
लगातार मैदा और गेंहू खाते रहने के कारण पाचनतंत्र दुरुस्त नहीं रहता क्योंकि शरीर में फाइबर्स की कमी हो जाती है। वहीं ब्लड ग्लूकोज भी नियंत्रित नहीं करता, जबकि साबुत अनाज जिसे होलग्रेन भी कहते हैं, इसमें लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, इसलिए ये बेहतर तरीके से ब्लड ग्लूकोज कंट्रोल करने में करने में मदद करता है। डायटीशियंस के मुताबिक सभी प्रकार के साबुत अनाज के तीन भाग होते हैं, एंडोस्पर्म, जर्म और ब्रैन इंटेक्ट, जिसे चोकर भी कहा जाता है। जबकि रिफाइन्ड अनाज में न तो जर्म होते हैं और न ही चोकर इसलिए हमारी डाइट में आधी मात्रा साबुत अनाज की होना चाहिए। सितंबर का महीना नेशनल होलग्रेन महीने के रूप में इसलिए मनाया जाता है, ताकि लोग इसे अपनी डाइट में शामिल करें। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के अनुसार साबुत अनाज में एंटी- ऑक्सीडेंट व फाइबर की अधिकता से स्ट्रोक का खतरा भी कम हो जाता है।
पोषक तत्व खो देते हैं रिफाइन अनाज
हम जो अनाज खाते हैं उसे अक्सर रिफाइन किया जाता है। उसमें न तो चोकर होता है और न ही बीज, जबकि साबुत अनाज चोकर (पौष्टिक बाहरी परत), जर्म (बीज के पोषक तत्वों से भरा एम्ब्रियो) और एंडोस्पर्म (जर्म का फूड सप्लाई, जो स्टार्च वाले कार्ब्स से भरा होता है) बरकरार होते हैं। साबुत अनाज में, ओट्स, ज्वार, बाजारा, ब्राउन राइस, क्विनोआ, कुट्टू, रागी शामिल होते हैं। दूसरी ओर रिफाइंड खाद्य पदार्थ रिफाइनिंग प्रक्रिया के दौरान बहुत सी अच्छी सामग्री खो देता है। रिफाइंड खाद्य पदार्थों में शामिल हैं, सफेद आटा, सफेद ब्रेड, सफेद चावल।
पाचत तंत्र और हार्ट भी हेल्दी रहता है
रिफाइन अनाज, शरीर में कब्ज, सूजन और मोटापा जैसी समस्याओं को बढ़ाते हैं, इसलिए चिकित्सक शरीर को स्वस्थ रखने के लिए डाइट में साबुत अनाज जैसे धान, मक्का, बाजरा, ज्वार, राई और जौ को शामिल करने के लिए कहते हैं। साबुत अनाज के सेवन से पाचन-तंत्र से जुड़ी समस्याएं दूर होने के साथ ही हार्ट भी हेल्दी रहता है। साबुत अनाज में फाइबर, प्रोटीन, आयरन, विटामिन-ई, कॉपर, जिंक और मैग्नीशियम शामिल होता है। बच्चों को बचपन से इसकी आदत डालना चाहिए ताकि उन्हें विटामिन, एंटी-ऑक्सीडेंट, फाइटोकेमिकल्स, मिनरल्स और फाइबर मिलते रहें। -डॉ. रश्मि श्रीवास्तव, डायटीशियन
जल्दी-जल्दी भूख लगने से रोकता है
साबुत अनाज में मौजूद फाइबर पेट को लंबे समय तक भरकर रखता है। इस कारण आप अतिरिक्त खाने से बच जाते हैं और वजन कम होने लगता है। इसके सेवन से बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) भी कम होता है, लेकिन कोई बीमारी या एलर्जी की समस्या है तो कंसल्ट करके इसका सेवन करें। दूसरा, शुगर के मरीजों के लिए ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक प्रकार का स्केल है, जिसकी मदद से खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइट्रेड सामग्री की मात्रा और ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा को मापता है, इसकी मदद से शुगर के रोगी अपने शुगर लेवल को कंट्रोल कर सकते हैं और खाने का चुनाव कर सकते हैं। -डॉ. अलका दुबे, न्यूट्रीशनिस्ट