जबलपुरमध्य प्रदेश

संगीत सिखाने का ऐसा जज्बा कि आजीवन बिना वेतन के किया काम

भातखंडे संगीत महाविद्यालय: शिक्षक और विद्यार्थी भी देते थे आर्थिक सहयोग, शास्त्रीय संगीत सिखाने का प्रदेश में इकलौता संस्थान

जबलपुर. शिक्षण के क्षेत्र में ऐसा उदाहरण मिलना दुर्लभ है। भातखंडे संगीत महाविद्यालय में आजीवन बिना वेतन लिए अध्ययन करवाने वाले आरडी धनोप्या सादा जीवन-उच्च विचार में यकीन रखते थे। हाथ में  छाता और थैला रहता था। मीलों पैदल चलकर आते थे और पूरे समय संगीत साधना करवाते थे। बिना किसी स्वार्थ के उन्होंने निस्वार्थ भाव से संगीत की सेवा की।

शिक्षकों से लेकर छात्रों तक ने किया दान

भातखंडे संगीत महाविद्यालय के लिए वह दौर बेहद संघर्ष का था। महाविद्यालय महाराष्ट्र हाई स्कूल में संचालित होता था। सरकार से जमीन दे दी थी जहां भवन बनाना था। इसके लिए श्री धनोप्या जैसा जज्बा हर किसी में नहीं था। हालाकि, अन्य शिक्षक अपने वेतन से कुछराशि इस फंड में देते थे। विद्यार्थी भी जो अच्छे अंक लाते प्रावीण्य सूची में स्थान बनाते वे भी भवन निर्माण के लिए कुछ राशि दान करते थे।

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बिना वेतन के पूरा किया कार्यकाल

श्री धनोप्या टेलीग्राफ फैक्टरी में नौकरी करते थे जहां से उनके परिवार का जीवन-यापन चलता था। वे दादा देशपाण्डे के बेहद करीबी साथी थे और भातखंडे संगीत महाविद्यालय में के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं। लिहाजा महाविद्यालय को स्थापित करने वे अपनी तरफ से भी प्रयासरत रहे। उन्होंने पूरा कार्यकाल बिना वेतन लिए ही सेवाएं दीं। जब महाविद्यालय के भवन के लिए शहर के प्रतिष्ठित व संपन्न लोगों से चंदा एकत्र करने की मुहिम चली तो श्री धनोप्या भी इसमें शामिल हुआ करते थे।

इनके योगदान अविस्मरणीय

महाविद्यालय की पहली मंजिल तो संघर्षों के साथ तैयार हो गई। ऊपर दूसरी मंजिल के लिए स्व. एमजी हर्षे ने भी पहली मंजिल के निर्माण में सहयोग किया व करवाया था। उनकी मृत्यु के बाद उनके सुपुत्र डॉ. बीआर हर्षे ने दूसरी मंजिल का निर्मण करवाया। ऊपरी मंजिल में बने सभा भवन का नाम भी म.ग. हर्षे सभा भवन रखा गया। इसी तरह डॉ. एस के खंपरिया द्वारा अपने दादा की स्मृति में रंगमंच हेतु दिए गए दान के कारण स्व. माता प्रसाद खंपरिया मंच नाम दिया गया।

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ऐसे हुआ भातखंडे नामकरण

श्री धनोप्या ने अपने एक आलेख में लिखा है जब भातखंडे संगीत महाविद्यालय का उदघाटन हुआ तो मुख्य अतिथि के रूप में  डॉ. पदम भूषण एसएन रातांजनकर ने अपने भाषण में नगर की संगीत रसिक जनता को वि.ना. भातखंडे के उन संगीत कार्यों से अवगत कराया  जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत की सामान्य जनता में अभिरुचित जागृत हुई। वे कार्य थे नगर में साप्ताहिक संगीत बैठकों का आयोजन, त्योहार जैसे होली,रामनवमी, शरद पूर्णिमा,गुरू पूर्णिमा के अवसर पर संगीत उत्सवों,समय-समय पर प्रांतीय या भारत ख्याति प्राप्त संगीत कलाकारों के कार्यक्रमों का आयोजन संगीत गोष्ठियां आदि करवाना शामिल था।

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स्व.धनोप्या जी मेरे शिक्षक थे। उनका संगीत के प्रति समर्पण इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने पूरे कार्यकाल कोई वेतन नहीं लिया। भातखंडे संगीत महाविद्यालय के वे संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं।
विलास मंडपे,प्रिन्सिपल,भातखंडे संगीत महाविद्यालय।

मैंने उनसे शिक्षण तो प्राप्त नहीं किया मगर उनके बारे में जो कुछ भी सुना है वह अपने आप में महत्वपूर्ण है। वे बेहद सादगी पूर्ण जीवन जीते थे उन्होंने बिना स्वार्थ संगीत की सेवा की है और संगीत सिखाया। ये उनकी बहुत बड़ी बात थी।  12 महीने उनके हाथ में  एक थैला और एक छाता रहता था। मीलों पैदल चलकर संगीत सिखाने आया करते थे ये मुझे याद है।
तापसी नागराज,शास्त्रीय गायिका।

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