
नई दिल्ली। देश में मुद्रास्फीति और कंपनियों द्वारा वार्षिक वेतन वृद्धि की सीमित दर ने पिछले 5 सालों में अधिकांश कर्मचारियों के वास्तविक वेतन में बदलाव को 0.4% से 3.9% के दायरे में सीमित कर दिया है। डेलॉइट के एक अध्ययन के अनुसार, यह स्थिति लोगों की आय, व्यय और उपभोग की क्षमता को प्रभावित कर रही है। साल 2025 में भी इस परिदृश्य में ज्यादा सुधार की संभावना नहीं दिखाई देती है।
वास्तविक वेतन वृद्धि 4 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद
इस अध्ययन में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के आधार पर मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए कंपनियों द्वारा दी जाने वाली औसत वेतन वृद्धि की तुलना में वास्तविक वेतन वृद्धि की गणना की गई है। साल 2025 में, मुद्रास्फीति में थोड़ी गिरावट के कारण वास्तविक वेतन वृद्धि 4 फीसदी तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2024 के 3.6 फीसदी से थोड़ा बेहतर है। हालांकि, यह कोविड से पहले के समय, जैसे 2019 में 5.2 फीसदी वास्तविक वेतन वृद्धि, की तुलना में अभी भी काफी कम है।
कंपनियां अधिकतर अपने कर्मचारियों को केवल मुद्रास्फीति के बराबर या उससे थोड़ी अधिक वेतन वृद्धि प्रदान कर रही हैं। यहां तक कि श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों को भी केवल 1-3 प्रतिशत अंकों की अतिरिक्त वृद्धि मिल रही है। वोल्टास के प्रबंध निदेशक प्रदीप बक्शी का कहना है कि इस स्थिति ने लोगों की खर्च करने की क्षमता को कमजोर कर दिया है। उपभोक्ता अब केवल जरूरी वस्तुओं की खरीदारी कर रहे हैं और अनावश्यक खर्चों, जो कोविड से पहले आम थे, से बच रहे हैं।
पिछले साल औसत वेतन वृद्धि रही 9 फीसदी
डेलॉइट के एक सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत में काम करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां, जो जनवरी-दिसंबर प्रदर्शन चक्र का पालन करती हैं, 2025 में औसत वेतन वृद्धि 8.8 फीसदी दे रही हैं, जो 2024 के 9 फीसदी से थोड़ी कम है। आईटी, मैन्युफैक्चरिंग, इंजीनियरिंग और कंज्यूमर जैसे क्षेत्रों में वेतन वृद्धि और भी कम होने की संभावना है। हालांकि मुद्रास्फीति में कमी आ रही है, लेकिन यह वेतन वृद्धि कर्मचारियों की वास्तविक क्रय शक्ति में कोई बड़ा सुधार नहीं ला रही है।
वेतन वृद्धि में कमी से पड़ता है मनोवैज्ञानिक प्रभाव
डेलॉइट इंडिया के पार्टनर आनंदोरूप घोष ने बताया कि पिछले कुछ सालों में वेतन वृद्धि दर मुद्रास्फीति की दर से केवल मामूली अधिक रही है। जैसे-जैसे यह अंतर घटता है, खासकर कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों के लिए वास्तविक आय और उनकी क्रय शक्ति और अधिक दबाव में आ जाती है। इसके साथ ही, वेतन वृद्धि में कमी का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है, क्योंकि लोगों को मुद्रास्फीति वास्तविक दरों से अधिक महसूस होती है।
मध्यम वर्ग इस स्थिति से सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है। वी-मार्ट रिटेल के प्रबंध निदेशक ललित अग्रवाल ने कहा कि मध्यम वर्ग को अपनी जीवनशैली में कटौती करनी पड़ी है। उन्होंने कर्ज लिया है, लेकिन पर्याप्त वेतन वृद्धि या पदोन्नति न मिलने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है। इस स्थिति ने उनकी दैनिक जरूरतों और उपभोग करने की क्षमता को और अधिक सीमित कर दिया है।
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