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तंज भरे तरानों से सजी हास्य की महफिल, बैतबाजी और सूफी कलामों पर झूमे दर्शक

गौहर महल में उर्दू अकादमी के साहित्योत्सव ‘जश्न-ए-उर्दू’ कार्यक्रम का हुआ शुभारंभ

उर्दू की मिठास रचीं कविता, शायरी और गीत-गजलों की रंगारंग प्रस्तुति के साथ शुक्रवार को मप्र उर्दू अकादमी के साहित्योत्सव ‘जश्न-ए-उर्दू’ का आगाज हुआ। शायरों के कलामों और डूब जाने वाले सूफी संगीत की पहली शाम मशहूर कॉमेडियन और कवि एहसान कुरैशी और सूफी गायिका ममता जोशी के नाम रही, जिसमें एहसान ने अपने शेरों से जमकर दाद बटोरी। उन्होंने जब, यहां चेहरे नहीं इंसान पढ़े जाते हैं, मजहब नहीं ईमान पढ़े जाते हैं, ये देश इसलिए महान है दोस्तों यहां एक साथ गीता और कुरान पढ़े जाते हैं…, पढ़ा तो मानो पूरा गौहर महल ही तालियों की गडगड़ाहट से गूंज उठा।

‘साहित्य में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति’ विषय पर आधारित इस तीन दिवसीय समारोह की पहली संध्या ममता जोशी की सुरीली आवाज में गूंजे सूफी नगमों के साथ समाप्त हुई। इससे पहले दोपहर में संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री धर्मेंद्र भाव सिंह लोधी ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस अवसर पर प्रमुख सचिव संस्कृति शिव शेखर शुक्ला, संचालक संस्कृति एनपी नामदेव एवं उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी उपस्थिति रहीं। इस अवसर पर दारा शिकोह कृत ‘सिर्रे अकबर’ के टीका ‘अलख प्रकाश’ का विमोचन भी किया गया।

चदरिया झीनी रे झीनी …, जैसे सूफी गीत गाए

अंतिम सत्र में प्रसिद्ध गायिका ममता जोशी ने अपनी बेहतरीन आवाज में सूफी नगमों की प्रस्तुति दी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत चदरिया झीनी रे झीनी… गीत से की तो उनकी मखमली आवाज से हर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गया। इसके बाद गीत, कोई उम्मीद बर नहीं आती…, पेश किया। कार्यक्रम में आगे उन्होंने राम मेरे घर आएंगे… की मनमोहक प्रस्तुति दी, जिस पर श्रोताओं ने तालियों से अभिवादन किया। वहीं पंजाबी गीत आजा तैणु अखियां उदीक दियां…, को सुनाया, जिस पर श्रोता जमकर झूमे। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।

व्याख्यान में साहित्यकारों ने विचार किए व्यक्त

साहित्य में औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति विषय पर व्याख्यान हुआ। इस मौके पर प्रो. अख्तर हुसैन और डॉ. साधना बलवटे ने विचार व्यक्त किए। डॉ. खान ने कहा कि औपनिवेशिक वाद से आशय किसी देश या उसके अवाम पर किसी गैर मुल्क के द्वारा जबरदस्ती एवं बलपूर्वक शासन करना और उस मुल्क के वासियों की राजनीतिक, शैक्षणिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उपयोग करना है।

शायरों ने कलाम सुनाकर लूटी दर्शकों की वाह-वाही

तीसरे सत्र में यादें रफ्तगां के तहत भोपाल के सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्यकार तखल्लुस भोपाली की याद में महफिले तंजो मिजाह आयोजित हुई, जिसमें हास्य व्यंग्य के प्रसिद्ध शायर एवं कलाकार एहसान कुरैशी, शायरा जीनत कुरैशी, सुनील कुमार तंग एवं प्रो. केके पटेल ने अपना कलाम पेश किया और खूब वाह वाही लूटी।

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