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अमेरिका : सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजों में एडमिशन के दौरान नस्ल-जाति के इस्तेमाल पर लगाई रोक, बोला- ये संविधान के खिलाफ

वॉशिंगटन। अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने यूनिवर्सिटी में एडमिशन को लेकर ऐतिहासिक फैसला लिया है। कोर्ट ने यूनिवर्सिटी एडमिशन में रेस यानी नस्ल और जाति के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। 9 जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया। कोर्ट के इस फैसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कड़ी आपत्ति जताई है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा

अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकियों (ब्लैक) और अल्पसंख्यकों को कॉलेज एडमिशन में रिजर्वेशन देने का नियम है। इसे अफर्मेटिव एक्शन यानी सकारात्मक पक्षपात कहा जाता है। अफर्मेटिव एक्शन अमेरिका के संविधान के खिलाफ है जो सभी नागरिकों को बराबरी का हक देता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने फैसले में लिखा, “छात्र के साथ एक व्यक्ति के रूप में उसके एक्सपीरिएंस के आधार पर व्यवहार किया जाना चाहिए, नस्ल के आधार पर नहीं।”

इस ग्रुप की शिकायत पर आया फैसला

कोर्ट ने यह फैसला एक्टिविस्ट ग्रुप स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशंस की पिटीशन पर दिया है। हायर एजुकेशन के सबसे पुराने प्राइवेट और सरकारी संस्थानों में खास तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और उत्तरी कैरोलिना यूनिवर्सिटी (UNC) पर उनकी एडमिशन की नीतियों को लेकर इस ग्रुप ने केस दायर किया था। बता दें कि, पिटीशन में दावा किया गया था कि नस्ल प्रेरित एडमिशन प्रतिस्पर्धा करने वाले समान या अधिक योग्य एशियाई-अमेरिकियों के साथ भेदभाव करता है।

राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति ने दी प्रतिक्रिया

राष्ट्रपति बाइडेन ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, वह विश्वविद्यालय प्रवेश निर्णयों में नस्ल और जातीयता के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दृढ़ता से असहमत हैं। यह फैसला दशकों की मिसाल से दूर चला गया। वहीं इस फैसले पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का कहना है कि, “इसने हमें यह दिखाने का मौका दिया कि हम एक सीट से कहीं अधिक योग्य हैं।”

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