
धर्मेंद्र त्रिवेदी-ग्वालियर। प्रदेश के 55 जिलों के 56 हजार गांवों के 4.29 करोड़ खसरों का रिकॉर्ड लोकसेवा केंद्र खोलकर व्यवसाय कर रहे निजी हाथों में है। सरकार ने दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन कर इन सभी केंद्रों को लोकसेवा अधिनियम के अंतर्गत डिजिटल सिग्नेचर से दस्तावेज जारी करने का अधिकार दिया है। इससे खसरों की गोपनीयता दांव पर लग गई है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति 70 रुपए की फीस में किसी भी भूमि का रिकॉर्ड निकाल सकता है।
सबसे ज्यादा खतरे में प्रदेश का लैंड बैंक है, क्योंकि लैंड बैंक की भूमि आसानी से कंप्रोमाइज हो सकती है। इसी से अब हर जिले में जनसुनवाई में सबसे ज्यादा शिकायतें खसरे में हेरफेर, भू स्वामी में बदलाव की ही आ रही हैं। उल्लेखनीय है कि इंदौर के पूर्व कलेक्टर पी. नरहरि ने पहला फर्जीवाड़ा पकड़ा था, जबकि ग्वालियर में 168 फाइलों में गड़बड़ी सामने आई थी। इसके बाद से अभी तक मोतीमहल स्थित लैंड रिकॉर्ड के अभिलेखागार में तीन बार आग लग चुकी है।
गड़बड़ी होने पर किसान जिम्मेदार, सरकार नहीं
अगर किसी किसान के साथ धोखाधड़ी होती है तो राजस्व विभाग या लोक सेवा केंद्र जिम्मेदार नहीं है, बल्कि -किसान को ही यह साबित करना पड़ता है कि वह भू स्वामी है। पूर्व में तहसीलदार जिम्मेदार होता था, क्योंकि उसके हस्ताक्षर से दस्तावेज जारी होता था। वहीं गड़बड़ होती भी थी तो ऋण पुस्तिका के सीरियल नंबर से पूरी जानकारी मिल जाती थी। हालांकि डिजिटलाइजेशन से पहले सरकार ने दावा किया था कि किसानों को पटवारी, आरआई, तहसीलदार कार्यालय में शोषण से बचाया जाकर दस्तावेज आसानी से मिलेंगे।
केस-1
डबरा का हथनौरा/ गिजौर्रा- तीन किसानों ने फर्जी भूमि स्वामी किसान बनकर दस्तावेज निकाले और 30 बीघा जमीन की रजिस्ट्री भी करवा दी। खुलासा होने के बाद एफआईआर दर्ज हुई है।
केस-2
मुरार (ग्वालियर)- सैनिक के भूखंड के फर्जी दस्तावेज निकालकर किसी अन्य ने दावा ठोक दिया। कलेक्टर से शिकायत के बाद तहसीलदार की जांच में सत्यता सामने आने पर भूखंड वापस मिला।
ऐसे समझें गड़बड़ी का तरीका
- लोकसेवा केंद्र या अन्य तरीके से दस्तावेज निकालकर आधार के लिए आवेदन किया जा सकता है। आधार केंद्र पर किसान की जगह दूसरा फोटो लगाकर आधार बनवा सकते हैं।
- चूंकि आधार संचालित करने वाले ऑपरेटर शासकीय नहीं हैं, इसलिए इनको लालच देना आसान है। आधार का क्लोन के बाद किसी अन्य व्यक्ति को रजिस्ट्री की जा सकती है।
- लोक सेवा केंद्र पर 30 रुपए में खसरा और 40 रुपए में दस्तावेज की नकल निकाली जा सकती है।
- अगर किसी ने फर्जी तरीके से दस्तावेज निकाल लिए तो लोकसेवा केंद्र संचालक उत्तरदायी नहीं है।
- एमपी ऑनलाइन या अपने घर से ही दस्तावेज निकाला जा सकता है।
- दस्तावेज निकालने के बाद इनके आधार पर फर्जी आधार कार्ड बनवाया जा सकता है।
डेटा लोकसेवा केन्द्र में
भूमि का सारा डिजिटल डेटा लोकसेवा केंद्र में सुरक्षित रहता है। भू-अभिलेख ने दस्तावेजों के सरलीकरण और उपलब्धता की आसानी के लिए यह सुविधा दी है। गड़बड़ी होने पर शिकायत कर दस्तावेज दुरुस्त किए जा सकते हैं। -रविनंदन तिवारी, अधीक्षक-भू अभिलेख-ग्वालियर
डिजिटलाइजेशन में सीधे लोक सेवा केंद्र से दस्तावेज जारी होते हैं, जिसमें पटवारी या तहसीलदार का इन्वॉल्वमेंट नहीं होता है। ऐसे में डिजिटल के साथ पुरानी व्यवस्था से काम होना चाहिए, ताकि जवाबदेही तय हो। -अश्विन सैनी, अध्यक्ष-प्रांतीय पटवारी संघ
डिजिटल डॉक्यूमेंट निकालने की व्यवस्था आमजन की सुविधा के लिए ही की गई है। डॉक्यूमेंट कोई भी देख सकता है और निकाल सकता है। हां, अगर कोई जालसाजी करता है तो यह गुनाह है। -गुंचा सनोबर, अपर आयुक्त, भू अभिलेख-मध्यप्रदेश