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वृद्ध बोले- बच्चे जीते जी गेंद की तरह यहां-वहां फेंकते रहे, उनसे तर्पण की उम्मीद क्यों रखें

बच्चों की बेरुखी से आहत अपना घर वृद्धाश्रम के 3 बुजुर्गों ने खुद किया अपना श्राद्ध

पल्लवी वाघेला-भोपाल। बच्चों को हमेशा अपनी छाया में रखते हैं, ताकि जिंदगी की धूप उन्हें झुलसा न दे। उनके सपनों के लिए कमर तोड़ मेहनत करते हुए अपनी इच्छाएं मारते रहते है और उनकी उम्मीदों को अपना उज्जवल भविष्य मान बैठते हैं। लेकिन, बड़े होकर जब सफल हो जाते हैं तो वो हम बूढ़े मां-बाप को भूल जाते हैं। मेरे तीन बेटे हैं, तीनों यहां से वहां मुझे गेंद की तरह फेंकते रहते थे। कभी बीमारी या किसी कारण ज्यादा दिन रुकना चाहूं तो बातें सुननी पड़ती थीं।

दो साल पहले गुस्से में बस में बैठी और फैजाबाद से निकल गई। पुलिस ने आश्रम पहुंचाया। यदि बच्चे साथ देते तो आज यहां क्यों होती। उनसे कोई उम्मीद नहीं। इसलिए खुद ही अपना श्राद्ध और पिंडदान कर दिया। यह कहना है चंपा बाई का। अपना घर वृद्धाश्रम में रह रही चंपाबाई सहित, आश्रम के तीन बुजुर्गों ने सोमवार को जीते जी अपना श्राद्ध और पिंडदान कर दिया।

तिरस्कार… नहीं सह सका

शुजालपुर के रहने वाले प्रेम नारायण सोनी करीब 15 साल से यहां हैं। बच्चे न होने पर भाई और उसके बच्चों को सोनी दंपति ने अपना मानकर पाला, पर किसी ने साथ नहीं दिया। उन्होंने वृद्धाश्रम में रहने का निर्णय लिया और श्राद्ध व पिंडदान का निर्णय लिया।

इंतजार… खत्म हुआ

खिलौना बुआ के नाम से पहचानी जाने वाली दादी ग्वालियर से यहां चली आई थीं। वे कहती हैं कि जो जीते जी कुशल पूछने नहीं आए वह मौत के बाद पिंडदान करेंगे, इसमें संशय है। इसलिए आज अपना श्राद्ध खुद करके मैंने वह इंतजार खत्म कर लिया।

अमावस के दिन सामूहिक तर्पण और भोज

अपना घर वृद्धाश्रम में अमावस के दिन आश्रम में निवासरत मृत सदस्यों का पिंडदान और श्राद्ध किया जाएगा। साथ ही इस दिन करीब 250 जरूरतमंद बुजुर्गों के लिए सामूहिक भोज भी होगा। संचालिका माधुरी मिश्रा ने कहा कि श्राद्ध में भोजन कराना पुण्य का काम होता है। हिंदू परंपराओं के अनुसार पितरों की तृप्ति बहुत महत्वपूर्ण है।

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