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वक्फ (संशोधन) अधिनियम : सभी धर्मों की संपत्तियों के लिए समान कानून बनाने की मांग, विहिप का जेपीसी को सुझाव

नई दिल्ली। वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने सुझाव दिया है कि देश में केवल मुस्लिम समुदाय के लिए ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों की धार्मिक संपत्तियों के लिए एक समान कानून बनाया जाए।

विहिप ने अपने पत्र में संविधान के अनुच्छेद 44 का हवाला देते हुए कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में यह प्रावधान है कि “स्टेट पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा।”

सभी धर्मों के लिए एक समान कानून की वकालत

विहिप के पत्र में कहा गया है कि वक्फ को पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, लेकिन ऐसा विशेष रूप से मुसलमानों के लिए किया गया है। जबकि हिंदू, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख और अन्य धर्मों के अनुयायी भी अपनी संपत्तियों को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित करते हैं।

पत्र में मांग की गई है कि सभी धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्तों को एक समान कानून के दायरे में लाया जाए। विहिप ने इसे धर्मनिरपेक्षता और संविधान की भावना के अनुरूप बताते हुए इसे लागू करने की अपील की है।

वक्फ अधिनियम का जिक्र

विहिप ने वक्फ अधिनियम, 1954 के इतिहास पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने उल्लेख किया कि यह अधिनियम सरकार द्वारा नहीं, बल्कि एक प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में पेश किया गया था। हालांकि, सरकार ने इसे समर्थन दिया और राज्यसभा की प्रवर समिति को भेजा। तत्कालीन कानून मंत्री सीसी बिस्वास ने स्पष्ट किया था कि यह सरकार की ओर से प्रायोजित नहीं था, लेकिन इसके पीछे का उद्देश्य सभी धर्मों की संपत्तियों के लिए समान व्यवस्था लाने का था।

राज्य का कर्तव्य है कि सभी नागरिकों के लिए हो समान कानून

संविधान के अनुच्छेद 44 का हवाला देते हुए विहिप ने कहा कि राज्य का कर्तव्य है कि वह देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानून सुनिश्चित करे। विहिप ने यह भी उल्लेख किया कि हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों और अन्य धर्मों के अनुयायी अपने मंदिरों, चर्चों और अन्य धार्मिक संस्थानों के लिए संपत्तियों का समर्पण करते हैं। लेकिन उनके लिए कोई विशेष कानून नहीं है। ऐसे में केवल मुस्लिम समुदाय के लिए विशेषाधिकार देने वाला कानून समान नागरिक संहिता की अवधारणा के विपरीत है।

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