
नई दिल्ली। आज यानी शनिवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आम बजट पेश किया गया। इसी के साथ रेल बजट भी किया गया। हालांकि, हमेशा ऐसा नहीं था। 2016-17 तक रेल बजट अलग से पेश किया जाता था। 2017 से इसे आम बजट में शामिल कर दिया गया, जिससे 92 साल पुरानी परंपरा समाप्त हो गई।
2017 में पहली बार हुआ रेल बजट और आम बजट का विलय
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 1 फरवरी 2017 को पहली बार आम बजट और रेल बजट को एक साथ पेश किया। इससे पहले, 21 सितंबर 2016 को केंद्र सरकार ने रेल बजट को आम बजट में मिलाने का फैसला लिया था। इससे पहले तक रेल बजट आम बजट से कुछ दिन पहले संसद में पेश किया जाता था। आखिरी बार 2016 में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने अलग से रेल बजट प्रस्तुत किया था।
1924 में क्यों शुरू हुई थी रेल बजट की अलग परंपरा
रेल बजट को आम बजट से अलग करने की परंपरा 1924 में शुरू हुई थी। यह निर्णय एक्वर्थ समिति (Acworth Committee) की सिफारिशों के आधार पर लिया गया था। 1921 में ईस्ट इंडिया रेलवे कमेटी के चेयरमैन सर विलियम एक्वर्थ ने रेलवे के लिए एक अलग मैनेजमेंट सिस्टम तैयार किया और 1924 से अलग रेल बजट पेश करने की परंपरा शुरू हुई।
आजादी के बाद पहला रेल बजट किसने पेश किया
भारत की आजादी के बाद पहला रेल बजट 1947 में रेल मंत्री जॉन मथाई ने पेश किया था। उन्होंने भारत के वित्त मंत्री के रूप में दो आम बजट भी प्रस्तुत किए थे।
क्या था रेल बजट के विलय का कारण
2016 में रेल मंत्रालय ने रेल बजट को आम बजट में विलय करने की घोषणा की। यह निर्णय नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिशों पर आधारित था। देबरॉय और किशोर देसाई ने ‘रेल बजट के साथ विलय’ पर एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें कुछ मुख्य सुझाव दिए गए थे। मसलन,
- रेल मंत्रालय को लाभांश देने की बाध्यता समाप्त होनी चाहिए।
- रेलवे के पूंजीगत व्यय (Capex) को वित्त मंत्रालय की सहायता से पूरा किया जाना चाहिए।
- रेल मंत्रालय को अपने पूंजीगत व्यय के लिए अतिरिक्त बजटीय संसाधनों से फंड जुटाने की छूट दी जानी चाहिए।
- केंद्र सरकार के वित्तीय लक्ष्य को एक समग्र दृष्टिकोण देना चाहिए, जिससे रेल, सड़क और जलमार्गों की योजना को बेहतर किया जा सके।
कभी रेलवे का राजस्व आम बजट से था अधिक
1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब रेलवे की आय केंद्र सरकार की कुल आय से 6% अधिक थी। सर गोपालस्वामी आयंगर समिति ने सिफारिश की थी कि रेलवे के लिए अलग बजट पेश करने की परंपरा जारी रहनी चाहिए। 1950-51 में संविधान सभा ने प्रस्ताव पास किया था कि अगले पांच वर्षों तक रेल बजट अलग से पेश किया जाएगा, लेकिन यह परंपरा 2016 तक यानी 66 साल तक चलती रही।
समय के साथ कैसे बढ़ा रेलवे का बजट
1947-48 में रेलवे का बजच 14 करोड़ 28 लाख रुपए था। 2014-15 में बढ़ते हुए 63,363 करोड़ रुपए पहुंच गया। यह यूपीए सरकार का अंतिम रेल बजट था। जो विगत वर्ष 2024-25 में 2,62,200 करोड़ रुपए हो गया।
जैसे-जैसे रेलवे का विस्तार हुआ, उसका बजट भी बढ़ता गया। 2016 तक रेलवे की कुल राजस्व प्राप्ति केंद्र सरकार के कुल राजस्व का 11.5% रह गई थी। इसी कारण सरकार ने रेल बजट को आम बजट में मिलाने का निर्णय लिया।
रेल बजट के विलय से क्या फायदे हुए
- वित्तीय लचीलापन: अब सरकार मिडिल ईयर की समीक्षा में रेलवे को जरूरत के हिसाब से फंड आवंटित कर सकती है।
- बेहतर परिवहन योजना: सड़क, रेलवे और जलमार्गों के बीच बेहतर तालमेल बैठाया जा सकता है।
- अतिरिक्त बोझ से राहत: रेलवे को सरकार को लाभांश नहीं देना पड़ता, जिससे उसका वित्तीय बोझ कम हुआ।
- बाजार से फंड जुटाने की सुविधा: रेलवे अब प्राइवेट इन्वेस्टमेंट और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के जरिए फंड जुटा सकता है।
One Comment