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मिलेट्स क्वीन और कच्छ में बारिश के पानी के मैनेजमेंट पर दिखाईं फिल्म

रवींद्र भवन में ग्रीन हब सेंट्रल इंडिया फिल्म फेस्टिवल का आयोजन

पानी की समस्या, वॉटरशेड प्रबंधन, पारंपरिक बीज बैंकों के निर्माण, जैविक खेती, जमीनी और सामुदायिक स्तर के संरक्षण, वेटलैंड कंजर्वेशन, मानवव न्यजीव संघर्ष जैसे विषयों पर आधारित फिल्मों का रवींद्र भवन में शनिवार को प्रदर्शन किया गया। अवसर था, दो दिवसीय ग्रीन हब सेंट्रल इंडिया फेस्टिवल के तीसरे संस्करण के आयोजन का। इसमें राजस्थान, मप्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात और पश्चिम बंगाल के युवाओं की फिल्में शामिल की गईं। इस दौरान फिल्म अर्बन टाइगर : वालेंटियर ऑफ भोपाल, फुलजारिया : द सीड कीपर, शिक्षा का सहारा, ब्रिज स्कूल हमारा, प्राइड ऑफ चंबा : चंबा सेक्रेड लंगूर का प्रदर्शन किया गया। वहीं, विकल्प : एक सफर ऐसा भी, रीवाइविंग कच्छ : वागड़ की रजत बूंदें, लिविंग गॉड, लूजिंग अबोब, डेंमो : हिमालयन ब्राउन बीयर प्रदर्शित की गईं।

रीवाइविंग कच्छ : वागड़ की रजत बूंदें

छत्तीसगढ़ की विवेका सिंह और मप्र के धार जिले की रेखा वास्केल ने साथ मिलकर फिल्म ‘रीवाइविंग कच्छ : वागड़ की रजत बूंदें’ का निर्माण किया है। उन्होंने बताया कि गुजरात के कच्छ क्षेत्र में पीने के पानी की समस्या है, क्योंकि वहां का पानी खारा है। ऐसे में वहां पर कोली समुदाय के लोग बारिश के पानी को स्टोर कर उसे पीने के लिए उपयोग करते हैं। इसी वॉटरशेड मैनेजमेंट पर यह फिल्म तैयार की।

फोटोग्राफी प्रदर्शनी भी लगाई

मकाशक्ति सेवा केंद्र की अध्यक्ष पूजा अयंगर ने बताया कि फैलोशिप के दौरान हम ग्रामीण और आदिवासी युवाओं को सिखाते हैं कि वे अपने समुदायों की पारंपरिक प्रथाओं और संस्कृतियों को आगे लाने और संरक्षित करने के लिए स्टोरी टेलिंग के माध्यम का उपयोग कैसे करें। इस कार्यक्रम में फिल्म प्रदर्शन के अलावा प्रस्तुतियां, लोक संगीत और फोटोग्राफी प्रदर्शनी भी शामिल हैं।

फुलजारिया : द सीड कीपर

‘फुलजारिया : द सीड कीपर’ फिल्म बनाने वाली शिवाली विश्वास ने बताया कि उन्होंने मिलेट्स क्वीन के नाम से मशहूर फुलजारिया बाई पर फिल्म बनाई है, जो कि बैगा समुदाय से आती हैं। जिस जमीन पर मिलेट्स उगाई जाती हैं, उस जमीन की ओनरशिप उनके पास नहीं है, इसलिए वह सीड बैंक का उपयोग कर रही हैं।

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