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World Poetry Day : जो बातें कई पन्नें भी व्यक्त ना कर पाए…वो कविता की एक पंक्ति कह देती है

दुनिया की खूबसूरती को बयां करने के लिए कविता से बेहतर कोई माध्यम नहीं है। कविता दिल के सबसे करीब की बात होती है। जो बात हम कई पन्नों में व्यक्त नहीं कर सकते वो कविता की एक पंक्ति कह देती है। दुनिया के दुखों का भार भी इन्हीं कविताओं ने सदियों से अपने कंधों पर ढो रखा है। दुनिया के जाने माने कवियों को सम्मान देने के लिए हर साल 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाया जाता है।

विश्व कविता दिवस का इतिहास

यूनेस्को ने साल 1999 में 30 वें सत्र के दौरान कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए यह दिवस मनाने का निर्णय लेते हुए इसकी घोषणा की थी। विश्व भर के कवियों ने अपनी शायरियों और कविताओं के जरिये हर समाज के पहलुओं को छुआ और समाज में बदलाव लाने में योगदान दिया।

हमारे देश और प्रदेश के भी कई कवि हैं, जिनकी कलम ने हर दिल को छुआ। तो यहां पढ़िए ऐसी ही कुछ बेहतरीन शायरों की शायरियां जो सालों से लोगों की जुबां पर बसी हैं…

राहत इंदौरी

जुबाँ तो खोल नजर तो मिला जवाब तो दे
मैं कितनी बार लूटा हूँ मुझे हिसाब तो दे।

आँखों में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूँ है
इतना डरते है तो घर से निकलते क्यूँ है।

कही अकेले में मिलकर झंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ-जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैंने किया था की छोड़ दूँगा उसे।

छू गया जब कभी ख्याल तेरा
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा।

कल तेरा जिक्र छिड़ गया था घर में
और घर देर तक महकता रहा।

हर एक हर्फ का अन्दाज बदल रक्खा है
आज से हमने तेरा नाम गजल रक्खा है
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रक्खा है।

मंजर भोपाली

मंजर भोपाली

आँख भर आई किसी से जो मुलाकात हुई
खुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई

सफर के बीच ये कैसा बदल गया मौसम
कि फिर किसी ने किसी की तरफ नहीं देखा

अब समझ लेते हैं मीठे लफ्ज की कड़वाहटें
हो गया है जिंदगी का तजुरबा थोड़ा बहुत

इधर तो दर्द का प्याला छलकने वाला है
मगर वो कहते हैं ये दास्तान कुछ कम है

मिर्जा गालिब

मिर्जा गालिब

हम को मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को ‘गालिब’ ये खयाल अच्छा है

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे

हम को उन से वफा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफा क्या है

मेरी किस्मत में गम गर इतना था
दिल भी या-रब कई दिए होते

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

वो आए घर में हमारे खुदा की कुदरत है
कभी हम उन को, कभी अपने घर को देखते हैं

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