भोपालमध्य प्रदेश

महिला दिवस विशेष : पीपुल्स समाचार की MD कैप्टन रुचि विजयवर्गीय ने कहा- आज की महिला कह सकती है ‘मैंने खुद अपना नसीब संवारा’

भोपाल। महिला दिवस के अवसर पर पीपुल्स समाचार की MD कैप्टन रुचि विजयवर्गीय ने कहा- स्त्री को प्रेम, वात्सल्य, त्याग और करुणा की प्रतिमूर्ति माना गया है। लेकिन वक्त आने पर देश रक्षा को वह शस्त्र भी उठा लेती है। यूं तो महिलाएं बड़े से बड़े काम कर उपलब्धियां भी हासिल कर रही हैं। अपने-अपने क्षेत्रों में कीर्तिमान भी रच रही हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण के काल में तो हमने स्वयं यह देखा कि वह जो बहुत साधारण ही घरेलू महिला दिखती थी, परिवार के कमाऊ सदस्य के नहीं रहने पर या उसकी नौकरी चली जाने पर परिवार के लिए आजीविका भी कमा रही है, घर भी संभाल रही है।

कामकाज में मल्टी डायमेंशनल होती हैं महिलाएं

कहा भी जाता है कि महिलाएं कुछ अलग ही मिट्टी की बनी होती हैं। उनमें हर स्थिति में संघर्ष का माद्दा और भरपूर संयम होता है। वह कामकाज में मल्टी डायमेंशनल होती हैं। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि चर्चित किताब ‘मैन आर फ्रॉम मार्स एंड वीमन आर फ्रॉम वीनस’ में जान ग्रे ने उल्लेखित किया है। चलिए, हम उनकी बात को कसौटी पर कसे बिना ना भी मानें तो अपने आस-पास की किसी सामान्य कामकाजी महिला को ही देख लीजिए। आप पाएंगे वह एक साथ कई काम करती हैं। घर के काम भी करती हैं, बच्चे भी संभालती हैं और साथ ही पूरी सक्षमता से नौकरी भी करती हैं।

भारतीय महिलाओं को नहीं मिलता आर्थिक लाभ!

हालांकि, दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि महिलाओं द्वारा घर में किए जाने वाले कामकाज को किसी भी देश की जीडीपी में शामिल नहीं किया जाता। शायद यही वजह है कि महिलाओं द्वारा घर-परिवार में किए जाने वाले कामों को ज्यादा महत्ता नहीं मिली, ना ही आर्थिक संबल। इस बात को सिद्ध करती है यूनाइटेड नेशन की एक रिपोर्ट, जिसके अनुसार भारतीय महिलाओं द्वारा किए गए 51 प्रतिशत काम का उनको कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलता।

‘मैं हूं अपनी एकमात्र पहचान, पूरे करती अब अपने अरमान’

ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट तो यह बताती है कि भारतीय महिलाएं एक आम दिन में पुरुषों के मुकाबले औसतन 94 मिनट ज्यादा काम करती हैं। लेकिन फिर भी उनके काम को कम करके आंका जाता है। ऐसे में हम सभी का यह दायित्व बनता है कि चाहे घर हो या दफ्तर, उनके काम के महत्व को समझें और उन्हें महत्वपूर्ण महसूस कराएं। स्त्री-पुरुष रूपी भेदभाव से ऊपर उठकर उन्हें पर्याप्त अवसर प्रदान करें, ताकि वे खुद को सिद्ध कर प्रगति के आसमान पर अपनी सफलता को दर्ज करा सकें। हालांकि आज की महिला बहुत गर्व से इन पंक्तियों के अंदाज में कह सकती हैं-

मैं हूं अपनी एकमात्र पहचान, पूरे करती अब अपने अरमान।
नहीं चाहती अब कोई सहारा, मैंने खुद अपना नसीब संवारा।।

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