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Women’s Day : इन मंदिरों में ‘बैन’ है पुरुषों की एंट्री, महिलाएं ही करती हैं पूजा

जैसा की आप जानते हैं कि किसी भी मंदिर या धार्मिक स्थल पर जाना वास्तव में शांति प्रदान करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में ऐसे मंदिर भी हैं, जहां महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है। इन मंदिरों में पुरुषों के जाने पर रोक है। चलिए जानते हैं इन मंदिरों और उनसे जुड़ी मान्यताओं के बारे में।

पुष्कर में स्थित ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर

ब्रह्मा मंदिर, राजस्थान

राजस्थान के पुष्कर में ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर है। इसे 14वीं शताब्दी में बनाया गया था। देवी सरस्‍वती के श्राप के चलते इस मंदिर में शादीशुदा पुरुष को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। वे मंदिर के आंगन से ही हाथ जोड़ लेते हैं और केवल महिलाएं ही मंदिर के अंदर जाकर पूजा करती हैं।

कन्याकुमारी में स्थित मां भगवती का मंदिर

भगवती देवी मंदिर, कन्याकुमारी

कन्याकुमारी में मां भगवती का मंदिर है। कहते हैं कि पति के रूप में भगवान शिव को पाने के लिए मां भगवती एक बार तपस्या करने के लिए यहां आई थीं। भगवती माता को संन्यास देवी भी कहते हैं इसलिए सन्यासी पुरुष ही मंदिर के गेट से मां के दर्शन कर सकते हैं। वहीं शादीशुदा पुरुषों को इस मंदिर में प्रवेश की ही अनुमति नहीं है, केवल महिलाएं ही यहां पूजा कर सकती हैं।

केरल में स्थित चक्कुलाथुकावु मंदिर

चक्कुलाथुकावु मंदिर, केरल

केरल में स्थित चक्कुलाथुकावु मंदिर में मां दुर्गा की पूजा की जाती है। इस मंदिर में हर साल पोंगल के समय नारी पूजा की जाती है। यह 10 दिनों तक चलती है और इस समय मंदिर में पुरुषों का आना बिल्कुल मना है। साथ ही पूजा के आखिरी दिन पुरुष महिलाओं के पैर धोते हैं।

जोधपुर में स्थित संतोषी माता मंदिर

संतोषी माता मंदिर, जोधपुर

जोधपुर के संतोषी माता मंदिर में शुक्रवार के दिन पुरुषों की एंट्री बैन है। अगर पुरुष बाकी दिनों में मंदिर जा रहे हैं, तो सिर्फ मंदिर के दरवाजे पर खड़े होकर माता के दर्शन कर सकते हैं, लेकिन पूजा नहीं कर सकते। शुक्रवार का दिन मां संतोषी का दिन होता है और इस खास दिन पर महिलाएं व्रत रखती हैं। इस दिन पुरुष यहां नहीं आ सकते।

असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर

कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी

असम के गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर है। ये मंदिर नीलांचल पर्वत पर बना है। माता के माहवारी के दिनों में यहां उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान मंदिर में पुरुषों की एंट्री पूरी तरह से प्रतिबंधित होती है। यहां तक की इस दौरान पुजारी का काम भी एक महिला ही करती है।

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