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सीएम, डिप्टी सीएम और स्पीकर जैसे प्रमुख पदों पर महाकोशल की उपेक्षा, अब मंत्री पद से उम्मीद

विस अध्यक्ष पद पर महाकोशल क्षेत्र का एक दशक से ज्यादा रहा कब्जा, कांग्रेस सरकार में भी मिले अहम पद

जबलपुर। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के नाम तय हो चुके हैं। इसके साथ एक बार फिर महाकोशल को उपेक्षा की गई है। इनमें से एक पर भी महाकोशल से कोई नहीं है। अब मंत्रिमंडल के गठन पर निगाह है। यह प्रतिक्रिया जबलपुर में प्रबुद्ध वर्ग ने व्यक्त करते हुए कहा कि महाकोशल के साथ छल हो रहा है। जबलपुर से 10 सालों तक दादा ईश्वदास रोहाणी विधानसभा अध्यक्ष के पद पर रहे और उन्होंने दोनों कार्यकाल संचालित किए। रोहाणी ने मंत्रियों और अफसरों को विस अध्यक्ष पद क्या होता है इसके मायने सिखा दिए। उनके बाद बने अध्यक्षों को इसका सीधा फायदा भी मिला। वहीं कांग्रेस ने भी 14 महीनों के कार्यकाल में नरसिंहपुर से एनपी प्रजापति को विधानसभा अध्यक्ष के पद पर रखा। इतना ही नहीं जबलपुर से दो-दो महत्वपूर्ण मंत्री दिए जिनमें तरुण भनोट और लखन घनघोरिया शामिल रहे।

पिछले कार्यकाल में भी कंजूसी

विगत कार्यकाल में भाजपा ने महाकोशल से प्रतिनिधित्व देने में कंजूसी की थी। जबलपुर से एक भी मंत्री नहीं था। 2013 में ईश्वरदास रोहाणी के निधन के बाद उनके पुत्र अशोक रोहाणी रिकॉर्ड मतों से जीतकर आए और इस बार वे तीसरी बार रिकॉर्ड मतों से जीते हैं। अजय विश्नोई,सुशील तिवारी इंदू हैं। वहीं सांसद से विधायक बने राकेश सिंह और मुख्यमंत्री के दावेदार माने जाने वाले प्रहलाद पटैल हैं जिन्हें सरकार बनने पर उच्च पदों से सिरे से खारिज किया है।

अलग महाकोशल राज्य ही विकल्प: महाकोशल चेम्बर

महाकोशल चेम्बर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष रवि गुप्ता कहते हैं कि अब तो एक ही विकल्प सामने है कि महाकोशल राज्य बनाया जाना चाहिए। 18-20 जिले हैं ये अपना इन्फ्रास्ट्रक्चर,अपने आय के साधन विकसित कर अपना संचालन कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कहते हैं कि छोटे राज्य होना चाहिए,छत्तीसगढ़ इसका उदाहरण है। यहां खनिज से लेकर अन्य सभी संसाधन हैं।

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