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तीनों राज्यों में प्रचंड जीत मोदी मैजिक और शाह की कुशल रणनीति का नतीजा

मनीष दीक्षित-मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव परिणामों ने भाजपा के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के सपने को फिर जागृत कर दिया है। कांग्रेस शासित दो राज्यों को छीनकर भाजपा ने उनकी कमर तोड़ दी। इससे पिछले कुछ महीनों से कर्नाटक तथा हिमाचल विजय के बाद जो बूस्टअप मिला था, उसकी हवा निकल गई। मप्र के नतीजों ने साबित कर दिया है कि पार्टी ने मोदी को मध्य में रखकर जो अभियान चलाया था, वह सफल रहा। जनता ने भी कांग्रेस को बता दिया कि ‘मध्य प्रदेश के मन में मोदी’ ही है। शिवराज सरकार के खिलाफ जिस एंटी इंकम्बेंसी की बात हो रही थी, वह दिखाई नहीं दी। यह वीडी शर्मा के नेतृत्व में संगठन की ही ताकत थी, जिसने कुछ सीटों पर ऐसे परिणाम दिए, जिसकी उम्मीद प्रत्याशियों को भी नहीं थी। इन नतीजों ने देश की हिंदी पट्टी में कांग्रेस को नकार दिया। मप्र में भाजपा की प्रचंड जीत का यह संदेश भी है कि आने वाले वर्षों में प्रदेश, कांग्रेस के लिए उप्र, गुजरात और प. बंगाल बन सकता है।

यह चुनाव कांग्रेस ने संगठन के बल पर नहीं, बल्कि जनता के भरोसे ही लड़ा। इन चुनावों को अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा था। तीनों राज्यों में भाजपा ने मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा और नतीजों से साबित कर दिया कि भाजपा का ट्रंप कार्ड मोदी का मैजिक और शाह की रणनीति ही है। यदि जीत के प्रमुख फैक्टरों की बात करें, तो लाड़ली बहना गेम चेंजर साबित हुई। यह पहला मौका था जब आरएसएस ने विधानसभा चुनाव में मैदानी मोर्चा संभाला। इ

सके अलावा सीएम चौहान की पॉपुलेरिटी, विधायकों-मंत्रियों के खिलाफ नाराजगी से अधिक थी। दूसरा- जनता यह मानती है कि भाजपा ने विकास के काम किए हैं। तीसरा- वह कांग्रेस विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ असंतोष को भुनाने में सफल नहीं हुई। मगर लोकसभा चुनाव के पहले नई सरकार के सामने बड़ी चुनौती अपने संकल्प पत्र की मुख्य घोषणाओं को पूरा करना होगा। चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के वित्तीय संसाधन सीमित हो गए हैं। ऐसे में देखना होगा कि प्रदेश के नए सीएम लाड़ली बहना को 3,000 तक की राशि, किसानों को बढ़ा समर्थन मूल्य, निराश्रित पेंशन को बढ़ाने और संविदा कर्मियों को रेगुलर करने के वादे कैसे पूरा करेंगे।

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