
वॉशिंगटन। दुनिया का सबसे अमीर देश अमेरिका गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। अमेरिका के ऊपर डिफॉल्टर यानी ‘दिवालिया’ होने का खतरा है। अमेरिका को पुराना कर्ज समय पर चुकाने के लिए नये कर्ज लेने की जरूरत पड़ गई है। बाइडेन संसद से नए कर्ज की मंजूरी हासिल करने की कोशिशों में जुटे हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही है। बाइडेन की हाउस स्पीकर कैविन मैक्कार्थी के साथ बातचीत भी नाकाम रही।
बाइडेन के पास महज 10 दिन का समय
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राष्ट्रपति जो बाइडेन के पास केवल 10 दिन का समय बचा है। इस दौरान उन्हें कैसे भी करके रिपब्लिकन पार्टी को मनाकर डेट् सीलिंग (नए कर्ज के लिए बिल पास कराना) अप्रूवल लेना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो अमेरिका डिफॉल्टर यानी ‘दिवालिया’ हो सकता है। सरकार किसी तरह के नए पेमेंट्स नहीं कर सकेगी। इसका असर केवल अमेरिका तक ही सीमित नहीं रहेगा, पूरी दुनिया पर इसका प्रभाव देखने को मिलेगा।
ऐसा कैसे हो गया
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश ऐसी स्थिति में कैसे पहुंच गया। दरअसल, यह सीधे तौर पर कमाई और खर्चों से जुड़ा है। अमेरिका के खर्चे उसकी कमाई से ज्यादा हैं। अमेरिका जरूरी खर्चों को पूरा करने के लिए कर्ज का बोझ बढ़ाता जा रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की कुल आमदनी 334 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है और खर्चे 564 लाख करोड़ रुपए है। इस तरह उसका कुल घाटा 229 लाख करोड़ से ज्यादा का है। ऐसे में अमेरिका खर्चों की वजह से कर्ज लेकर उसकी भरपाई करता है। 50-60 साल से अमेरिका में यही होता आया है।
गोल्डमैन सैश की चेतावनी
इंवेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैश के मुताबिक, अगर अमेरिका अपने कर्ज संकट को खत्म नहीं करता है, तो आने वाले तीन हफ्तों में कैश खत्म हो जाएगा। 8 या 9 जून तक ट्रेजरी डिपार्टमेंट के पास कैश गिरकर 30 बिलियन डॉलर रह जाएगा, जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कम है। अमेरिका के डिफॉल्ट होने का सीधा मतलब है कि, मंदी आ जाएगी और इसका असर दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर देखने को मिलेगा।