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बाल मजदूरी का दंश झेला, अब दिला रहीं शिक्षा

पल्लवी वाघेला/भोपाल। हम कभी दीप जैसे जलते हैं, और कभी बर्फ से पिघलते हैं, राह पर हौसले की चलते हुए, हार को जीत में बदलते हैं। यह पंक्तियां भोपाल जिले के गांव नरोन्हा साकल की सरपंच रामबाई नायक पर सटीक बैठती हैं। 38 वर्षीय रामबाई पहली महिला सरपंच होने के साथ ही वह अपने गांव तंडा और नरोन्हा साकल की सबसे युवा सरपंच भी हैं। आर्थिक तंगी और बाल मजदूरी का दंश झेलते हुए भी इस महिला ने हार नहीं मानी। राम बाई एसओएस बालग्राम के परिवार सशक्तिकरण कार्यक्रम से जुड़ी जिसके बाद उन्होंने ग्रामीणों की इच्छा से चुनाव लड़ा। उन्होंने खुद को साक्षर बनाया,लीडरशिप भी विकसित की।

उपलब्धियां : रामबाई ने गांवों में दो वॉटर टैंक बनवाए जिससे टंडा और नरोन्हा साकल गांवों के हर घर में पीने का पानी आसानी से पहुंच सके। 40 से अधिक निर्माण मजदूरों के परिवारों को रोजगार देने व उनके बच्चों को मुμत शिक्षा से जोड़ने का काम किया। 22 बुजुर्गों को पेंशन दिलाने में सहायता की। घरों में शौचालय का निर्माण, 18 परिवारों को गैस कनेक्शन, सवा सौ से अधिक परिवारों को मुख्यमंत्री आवास योजना का लाभ दिलवाया।

एक साधारण सी महिला भी हिम्मत करे तो अपनी ख़्वाहिशें पूरी कर सकती है। मैं स्वाभाविक लीडर नहीं हूं, मगर महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने की इच्छा ने मुझे सरपंच बनने के लिए प्रेरित किया। – रामबाई नायक, सरपंच, नरोन्हा साकल

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