
बर्लिन। वर्तमान में वजन कम करने के लिए अधिकतर लोग इंटरमिटेंट फास्टिंग करते हैं। इंटरमिटेंट फास्टिंग करने से वजन तेजी से कम होता है। हाल ही के शोध में पाया गया है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग टीनएजर्स के लिए सही नहीं है। इंटरमिटेंट फास्टिंग करने से उनकी कोशिकाओं के विकास पर असर पड़ सकता है। जर्मनी के टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख (टीयूएम), एलएमयू हॉस्पिटल म्यूनिख और हेल्महोल्त्ज म्यूनिख के वैज्ञानिकों ने बताया कि उम्र के अनुसार इंटरमिटेंट फास्टिंग के प्रभाव अलग हो सकते हैं।
इंटरमिटेंट फास्टिंग का मतलब है कि व्यक्ति हर दिन केवल 6 से 8 घंटे के भीतर ही भोजन करे और बाकी समय उपवास रखे। यह डायबिटीज और हृदय रोग से बचाव में मददगार माना जाता है और वजन कम करने में भी सहायक होता है। जर्नल सेल रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोध में पाया गया कि लंबे समय तक इंटरमिटेंट फास्टिंग करने से कम उम्र के चूहों में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं (बीटा सेल्स) के विकास में रुकावट आ गई। शोधकर्ता प्रोफेसर स्टीफन हर्जिग ने बताया, हमारी स्टडी में यह साफ हुआ कि इंटरमिटेंट फास्टिंग वयस्कों के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन बच्चों और किशोरों के लिए इसमें कुछ खतरे हो सकते हैं।
चूहों पर किया गया शोध
- शोध में किशोर, वयस्क और बुजुर्ग चूहों को एक दिन बिना भोजन रखा गया और अगले दो दिन सामान्य आहार दिया गया।
- दस हफ्तों बाद देखा गया कि वयस्क और बुजुर्ग चूहों के शरीर में इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ गई, जिससे उनका मेटाबॉलिज्म बेहतर हुआ।
- यह रक्त में शुगर के स्तर को नियंत्रित करने और टाइप 2 डायबिटीज से बचाने के लिए जरूरी है।
- किशोर चूहों में बीटा सेल्स की कार्यक्षमता कम हो गई, जिससे इंसुलिन का उत्पादन घट गया।
- इंसुलिन की कमी डायबिटीज और अन्य मेटाबॉलिक समस्याओं का कारण बन सकती है।
बीटा सेल्स पूरी तरह विकसित नहीं हुए
शोधकर्ता लियोनार्डो मट्टा के अनुसार, इंटरमिटेंट फास्टिंग बीटा सेल्स के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन हमने पाया कि कम उम्र के चूहे लंबे समय तक उपवास के बाद कम इंसुलिन बना रहे थे। जब वैज्ञानिकों ने इसका कारण जानने की कोशिश की, तो पाया कि कम उम्र के चूहों के बीटा सेल्स पूरी तरह विकसित नहीं हो सके। इस शोध की तुलना जब इंसानों के टिशू डेटा से की गई, तो पता चला कि टाइप 1 डायबिटीज वाले मरीजों में भी बीटा सेल्स का विकास बाधित हो सकता है।
बच्चों में डायबिटीज जानने कराएं लिपिड टेस्ट
इधर किंग्स कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने बच्चों में डायबिटीज की बीमारी को पहचानने का अनोखा तरीका निकाला है। भविष्य में बच्चों में लिपिड काउंटिंग के जरिए डायबिटीज, हार्ट डिजीज और कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों के बारे में पहले ही पता लगाया जा सकता है। इस ब्लड टेस्ट में लिपिड की पहचान करके भविष्य में होने वाली बीमारी के बारे में पता लगाया जा सकेगा। ये ब्लड में पाए जाने वाले फैट होते हैं, जो मानव शरीर में सबसे आम हैं। अभी तक लिपिड टेस्ट सिर्फ कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स के बारे में पता लगाने के लिए किया जाता था, मगर रिसर्च से पता चला कि इनकी काउंटिंग के जरिए बच्चों में बीमारी होने से पहले संभावनाओं का पता लगाया जा सकता है। रिसर्च 13000 बच्चों पर की गई, जिसमें लिपिड टेस्ट के माध्यम से भविष्य में होने वाले डायबिटीज के जोखिम को पहले ही बता दिया गया है।