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द कश्मीर फाइल्स : पत्नी को खिलाया पति के खून से सना चावल…कश्मीरी पंडितों की ऐसी दुर्दशा देख सहम उठेगा दिल

पुरानी फाइलों में दबे सच कई बार उनमें ही सिमट कर रह जाते हैं, लेकिन जब वो सामने आते हैं तो विचलित कर देते हैं। निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने ताशकंद फाइल्स (2019) के बाद अब कश्मीर की तीन दशक से अधिक पुरानी फाइल के पन्ने पलटे हैं। इस फिल्म में दिखाया गया कश्मीरी पंडितों का दर्द और उनके साथ हुए अत्याचार रूह कंपा देने वाले हैं। द कश्मीर फाइल्स को IMDb पर यूजर्स ने 10 में से 10 पॉइंट दिए हैं। आमतौर पर किसी भी फिल्म के लिए हाल फिलहाल यहां इतनी शानदार रेटिंग नहीं दिखी है।

कश्मीर की सबसे गंभीर समस्या को किया उजागर

विवेक ने अपनी पिछली फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’में इतिहास की मैली चादर से ढकी पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या की असलियत को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की थी। इस बार उन्होंने कश्मीर की सबसे गंभीर समस्या का नकाब नोंचा है। ये हकीकत भरी फिल्म आपको अंदर तक हिला देगी। इस फिल्म को देखकर आप खुद भी कश्मीरी पंडितों के दर्द को महसूस कर पाएंगे।

फिल्म की कहानी

2 घंटे 40 मिनट की द कश्मीर फाइल्स के कुछ हिस्से आपको झकझोर सकते हैं। इस फिल्म में 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के राज्य से बेघर होने की कहानी को दर्शाया गया है। कश्मीर का यह व्याकुल कर देने वाला सच लोग नहीं जानते कि कैसे आतंकियों ने कश्मीरी-हिंदुओं को उनकी जमीन से बेदखल किया। बेरहमी से उनका कत्ल किया, उनकी महिलाओं-बच्चों पर शर्मनाक अत्याचार किए। कश्मीरी लोग अपनी धरती से पलायन के बाद देश में ही शरणार्थी बन कर रह गए और आज तक उन्हें न्याय नहीं मिला। पुरानी पीढ़ियों से होता हुआ यह दर्द नई पीढ़ी की रगों में दौड़ रहा है।

किसके इर्द गिर्द घूमती है फिल्म

द कश्मीर फाइल्स एक टाइम ट्रैवल के तौर पर काम करती है, जिसमें 1990 के वक्त को मौजूदा पीढ़ी के साथ जोड़ने का काम किया गया है। जेएनयू, दिल्ली में पढ़ने वाला छात्र अपने दादा की अस्थियों को विसर्जित करने कश्मीर जाता है। यहां पर उसकी मुलाकात दादा के दोस्तों से होती है और वहां उसका सामना हकीकत से होता है। किस तरह कश्मीरी पंडितों को उनके घर से खदेड़ा गया था। वह उस आतंकी फारूक मलिक बिट्टा से भी रू-ब-रू होता है, जो उसके परिवार समेत कश्मीर की बर्बादी का जिम्मेदार है। कश्मीर फाइल्स में राजनीति से अधिक वहां हुए हिंसक घटनाक्रम और कश्मीर को भारत से तोड़ने वाली षड्यंत्रकारी सोच पर फोकस किया गया है।

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फिल्म के हिला देने वाले दृश्य

एक दृश्य में चावल की कोठी में छुपे पंडित के बेटे को जब आतंकी गोलियों से छलनी कर देता है तो उसके खून से सने चावल बिखर जाते हैं। आतंकी, पंडित की बहू से वह चावल खाने को कहता है। अपने परिवार के अन्य सदस्यों की जान बचाने के लिए वह चावल खा लेती है। एक और दृश्य में आतंकी पुलिस की वर्दी में 24 कश्मीरी-हिंदुओं को एक कतार में खड़ा करके गोलियों से भून देते हैं। महिलाओं को हर तरह से अपमानित करते हुए पाशविक हिंसा हैं।

सच्ची कहानियों पर आधारित है फिल्म

फिल्म बहुत सारे पीड़ितों की सच्ची कहानियों और दस्तावेजों पर आधारित है। आर्टिकल 370 से लेकर शरणार्थी कैंपों में कश्मीरियों की दुर्दशा और उस पर राजनेताओं की संवेदनहीनता को भी निर्देशक ने यहां उभारा है। कश्मीर फाइल्स ऐसी कई सारी बातें सामने लाती है, जो लोगों को जाननी चाहिए। पुष्कर नाथ पंडित के रूप में अनुपम ऐसे शख्स की पीड़ा को पर्दे पर उतारते हैं, जो अपनी जमीन और घर से बेदखल होने के बाद पूरी जिंदगी फिर से वहां जाने का ख्वाब देखते हुए इस दुनिया से गुजर जाता है।

स्टार कास्ट

अनुपम खेर ने पुष्करनाथ के दर्द को बखूबी बयां किया है, वहीं दर्शन एक कंफ्यूज्ड यूथ के रूप में अपने किरदार को पूरी ईमानदारी से जीते हुए दिख रहे हैं। कहानी के विलेन फारूख मल्लिक बिट्टा के रूप में चिन्मय मांडलेकर को देखा गया। प्रोफेसर के रोल में पल्लवी जोशी के अलावा फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, अतुल श्रीवास्तव, प्रकाश बेलावड़ी, पुनीत इस्सर भी नजर आए।

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