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आज भी मैं जब किसी पावन नगरी में जाता हूं तो लोग कहते हैं… हनुमान चालीसा के गायक आ गए: हरिहरन

रवींद्र भवन में साहित्यकार श्याम मुंशी की स्मृति में ‘मेरा भोपाल बकौल श्याम मुंशी’ कार्यक्रम का आयोजन

श्याम भाई और मेरी दोस्ती अच्छी थी। यूं कहें कि मैं उनका बहुत बड़ा फैन था, अपने बड़े भाई की तरह उन्हें मानता था, वह बड़े ही समझ के साथ अपनी बात रखते थे और बहुत ही क्लियर इंसान थे, मैं भोपाल आता था तो उनसे मिलने जरूर आता था। श्याम मुंशी के साथ मैंने कई यादगार लम्हे बिताए हैं, 1980 में मैं पहली बार भोपाल आया था, तब श्याम के साथ मुन्ना भाई भी उनके दोस्त थे। उनसे हम मिले और फिर हमारा तीन चार दिन रुकना हुआ। उसमें हर दिन हम मिलते थे और शाम को लतीफ खान साहब के साथ हमारी महफिल का आयोजन होता था, उन दिनों की बात ही अलग है ऐसा लगता है कि अभी छह महीने पहले की बात है। वह बहुत ही उम्दा इंसान थे जिसको शब्दों में बयां नहीं कर सकता। यह कहना है मशहूर गायक हरिहरन का। जो कि शनिवार को मशहूर साहित्यकार श्याम मुंशी की स्मृति में आयोजित मेरा भोपाल बकौल श्याम मुंशी कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे। इस अवसर पर लेखक रूमी जाफरी भी उपस्थित थे। दोनों ने भोपाल और श्याम मुंशी से जुडे अपनी यादें सांझा की।

बेटे के साथ एल्बम रिलीज होने वाला है

हरिहरन ने कहा कि जब 25 साल पहले मैंने हनुमान चालीसा गाया, तो मुझे भी नहीं पता था कि वह इतना प्रसिद्ध हो जाएगा। आज भी जब मैं किसी पावन नगरी जाता हूं तो लोग मेरा चेहरा देखकर बोलते हैं कि यह वही हनुमान चालीसा के गायक हैं, जिसे सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगता है। इसी से मुझे असली पहचान भी मिली। उन्होंने कहा कि मेरे बेटे को बचपन से ही संगीत में रुझान था, ऐसा नहीं है कि मैंने उसे जबरदस्ती इस क्षेत्र में लाया, वो बना ही संगीत के लिए है। मैंने बेटे अक्षय के साथ ‘नो मिंस नो’ म्यूजिकल प्रोजेक्ट पर काम किया है और अब आने वाला हमारा ‘कास्मिक एंबिएंस’ एल्बम रिलीज होने वाला है।

रंज की जब गुफ्तगू…

कार्यक्रम के दौरान हरिहरन ने गायन से श्रोताओं को दिल जीत लिया। कार्यक्रम की पहली शुरुआत में उन्होंने गुजर आने में और बुलाते भी नहीं… गीत सुनाया। इसके बाद रंज की जब गुफ्तगू होने लगी…, मुझे फिर वही…, गजल सुनाई। इस मौके पर ‘सिर्फ नक्शे कदम पर रह गए’ पुस्तक के दूसरे संस्करण का विमोचन किया गया।

दो साल में एक ही फिल्म लिखूंगा : रूमी

लेखक रूमी जाफरी ने बताया कि कामेडी सुपरहिट फिल्में लिखने के बाद मैंने ट्रैक बदला और चेहरे जैसी सस्पेंस थ्रिलर फिल्म लिखीं। अब दो साल में एक ही फिल्म लिखूंगा, जिसमें मैंने अपने ट्रेक को बदलता रहूंगा। श्याम मुंशी की याद में रूमी जाफरी ने कहा कि एक शब्द एक प्रेस कान्फ्रेंस में उनके बारे में नहीं कहा जा सकता, कला की कोई विद्या नहीं होती, ऐसी कोई विधा नहीं थी जिनके बारे में श्याम भाई को नॉलेज नहीं था। फिर वह कुश्ती हो, संगीत या कविताएं हो हर विद्या पर श्याम मुंशी से बात की जा सकती थी। भोपाली कल्चर पर रूमी ने कहा कि भोपाल में बतोले बाजी का बहुत चलन है जो आधा सच और आधा किस्सा है। भोपाल ऐसा शहर है जिसमें हर एक चीज के लिए एक शब्द निर्धारित होता है। जैसे पत्थर को उनके साइज के हिसाब से कभी गिट्टी, कभी कम कंकुरी, कभी अलंगा तो कभी चट्टान कहा जाता है।

भोपाल के किसी भी एक स्थान का नाम श्याम मुंशी के नाम पर रखा जाए

रूमी जाफरी ने किस्सागोई में स्व. श्याम मुंशी के साथ जुड़े रिश्तों को लेकर कहा कि जैसे भाई-बहन, मामा, चाचा से हुई पहली मुलाकात हमें याद नहीं रहती, उसी तरह श्याम मुंशी से हुई पहली मुलाकात भी यादों से दूर है, हां एक वाकया जरुर याद है, जब रवींद्र भवन में रिहर्सल के दौरान उन्होंने प्यार से मुझे पीठ पर मुक्का मारा था। पहली बार जब मुंबई गया तो जरूरी समझाइश देते थे। जब वो मुंबई आते थे तो संगीत से जुड़े वहां के सभी बड़े कलाकार उन्हें घर में दावत देते थे। 1989 में ओमपुरी और अन्नू कपूर भोपाल मुझसे मिलने आए थे। तब घर में एक आयोजन हुआ, जिसका संचालन मुंशी जी कर रहे थे, तब ओमपुरी और अन्नू कपूर उनसे इस कदर प्रभावित हो गए कि जाकर उन्हें गला लगा लिया और बोले कि तुम्हारी जगह तो बंबई में है। चूंकि श्याम मुंशी ने देश-दुनिया में भोपालियत का लहजा पहुंचाया है, मैं चाहता हूं, शहर के किसी भी स्थान का नाम उनके नाम पर रखा जाए, जिससे लोग श्याम मुंशी के बारे में जान सकें।

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