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पुस्तक “सिंधिया और 1857” का हुआ विमोचन, दिग्विजय सिंह भी पहुंचे, झांसी-ग्वालियर राजवंशों के आपसी संबंधों का है संकलन

भोपाल। डॉ. राकेश पाठक की नई पुस्तक “सिंधिया और 1857” का विमोचन आज भोपाल में हुआ। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. विजयदत्त श्रीधर और इतिहासकार राम पुनियानी की मौजूदगी में हुए इस कार्यक्रम में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी पहुंचे। इस किताब में डॉ. पाठक ने कई ऐतिहासिक दस्तावेजों के जरिए आजादी की पहली लड़ाई में झांसी के नेवालकर और ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के साथ ही तत्कालीन अंग्रेज शासन की नीतियों के बारे में भी विस्तार से बताया है। गांधीवादी पत्रकार डॉ. राकेश पाठक की ये किताब इतिहास के कई संकलनों का अध्ययन कर लिखी गई है। इस पुस्तक में कई ऐसे पहलुओं का जिक्र है, जिसके बारे में पाठकों को पहले पता ही नहीं था।

कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी पहुंचे।

आजादी के संग्राम पर पहली रिपोर्ट मार्क्स ने लिखी

इस किताब के लेखक डॉ. राकेश पाठक ने विमोचन कार्यक्रम के दौरान दावा किया कि देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम पर पहली किताब 1907 में वीर सावरकर द्वारा लिखी मानी जाती है, लेकिन इस संबंध में पहली रिपोर्टिंग कार्ल मार्क्स द्वारा की गई थी। लेखक ने बताया कि दस्तावेजों का अध्ययन करते समय ये जानकारी आई कि उस समय अंग्रेज सरकार द्वारा जो रिपोर्ट और टेलेक्स के संदेश इंग्लैंड भेजे जाते थे, उनका अध्ययन कर 1857 और 1858 में कार्ल मार्क्स ने एक अमेरिकी अखबार के लिए कई लेख लिखे थे। सेतु प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई इस किताब में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम को लेकर कई भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश की गई है।

डॉ. राकेश पाठक की नई पुस्तक “सिंधिया और 1857″।

स्वतंत्रता संग्राम में सिंधिया की भूमिका पर शोध

किताब में झांसी के नेवालकर और ग्वालियर के सिंधिया राजवंशों के संबंधों के बारे में विस्तार से बताया गया है। किताब में उल्लेख है कि दोनों राजघरानों के रिश्ते सामान्य नहीं थे। क्योंकि, दोनों ही शासक पेशवा द्वारा नियुक्त सूबेदार थे। पुस्तक सिंधिया और 1857 में वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राकेश पाठक दोनों राज्यों के रिश्तों की ऐतिहासिक पड़ताल करते लिखते हैं, कि उस समय के हालात के कारण जयाजीराव सिंधिया और रानी लक्ष्मीबाई का साझा मोर्चा बन पाना संभव ही नहीं था। उस समय के गजेटियर तथा अन्य दस्तावेजों की सहायता से तत्कालीन देसी रियासतों की राजनीति का खुलासा करने के साथ ही इस किताब में अंग्रेजों की कूटनीति का भी पर्दाफाश किया गया है।

सिंधिया परिवार और नेवालकर वंश की भीतरी राजनीति की विवेचना से यह भी तथ्य सामने आए हैं, कि उस दौर में एक राष्ट्र के रूप में भारत की संकल्पना सिरे से अनुपस्थित थी। ऐसे में हर किसी शासक का फोकस अपने विशेषाधिकारों और अपनी सत्ता को बचाने पर ही केंद्रित था। डॉ. पाठक किताब में लिखते हैं कि सिंधिया राजवंश ने 1857 से पहले भी अंग्रेजोंके खिलाफ कई युद्ध लड़े थे।

ये भी रहे मौजूद

इस किताब के विमोचन के मौके पर आनंद वर्धन सिंह, अशोक कुमार पांडे, शीबा असलम फहमी और सरदार दया सिंह भी मौजूद रहे। गौरतलब है कि डॉ. पाठक की इससे पहले तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें काली चिड़ियों के देश में (यूरोप का यात्रा वृत्तांत), बसंत के पहले दिन से पहले (कविता संग्रह) और मप्र की स्वातंत्रोत्तर हिंदी पत्रकारिता का इतिहास (शोध पुस्तक) शामिल हैं।

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