
सिद्धार्थ तिवारी-जबलपुर। जेल अब सुधार गृह के रूप में सामने आ रहा है। वहां कैदियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है ताकि, वे बाहर निकलकर अपना रोजगार कर सकें। यहां हुनर पाकर बंदियों ने न सिर्फ अपने रोजगार की व्यवस्था की, बल्कि दूसरों को भी सिखाया है। यहां की खुली जेल में रहने वाले बंदियों ने जेल से प्रशिक्षण पाकर सार्थक पहल की है। यहां की खुली जेल में रहने वाले 9 कैदियों में से दो ने सिलाई और स्क्रीन प्रिंटिंग के काम को पैरोल के दिनों में दूसरों को भी सिखाया।
जेल में सिलाई सीखकर रिश्तेदारों को भी दिया प्रशिक्षण
विदिशा निवासी शमीम अहमद शहीद को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा हुई थी। अच्छे आचरण के कारण उसे खुली जेल जबलपुर भेजा गया है। जहां उसने सिलाई का काम सीखा। जब वह पेरोल पर बाहर निकला, तो अपने रिश्तेदारों और अन्य लोगों को भी सिलाई सिखाई। अहमद का कहना है कि उसकी सजा का एक साल और बचा है, वह बाहर निकलकर इस काम को बड़े पैमाने पर शुरू करेगा।
खुद सीखी स्क्रीन प्रिंटिंग, परिचितों को भी सिखाई
अनूपपुर के राजेन्द्र ग्राम निवासी बंदी जित्तू उर्फ जितेन्द्र चंदेल पेटिंग का काम करता है। हत्या के मामले में उसे आजीवन कारावास हुआ था, लेकिन अच्छे आचरण के कारण वह जबलपुर की खुली जेल में है। जहां वह परिवार के साथ रहता है, जेल के अंदर उसने स्क्रीन प्रिंटिंग का काम सीखा है। पेरोल में जब जाता है, तो वह इसका प्रशिक्षण अपने परिचितों को देता है, ताकि जब वह बाहर निकले, तो बड़े पैमाने पर यह काम कर सके।
खुली जेल में रहने वाले बंदियों और उनके परिजन को अलग से क्वार्टर दिया जाता है। इसके अलावा उनसे मिलने के लिए किसी को भी कोई रोकटोक नहीं होती। यह सुविधा अच्छे चालचलन से मिलती है। – अखिलेश तोमर, जेल अधीक्षक