
वाराणसी। ज्ञानवापी मामले में सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज करते हुए वाराणसी के ज्ञानवापी तहखाने (व्यास तहखाना) में हिंदू पक्ष की पूजा को जारी रखने का आदेश दिया है। इससे पहले 31 जनवरी को वाराणसी जिला कोर्ट ने व्यास परिवार को तहखाने में पूजा करने का अधिकार दिया था।
हिंदू और मुस्लिम पक्षों के तर्क सुनने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने व्यास तहखाना में पूजा को लेकर 15 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
उत्तर प्रदेश : ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज करते हुए व्यास तहखाने में हिंदू पक्ष की पूजा को जारी रखने का दिया आदेश।#HighCourt #Gyanvapi #Varanasi pic.twitter.com/lsd63vAV4h
— Peoples Samachar (@psamachar1) February 26, 2024
मुस्लिम पक्ष ने की थी तहखाने में पूजा रोकने की मांग
मुस्लिम पक्ष यानी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने व्यास तहखाने में पूजा पर रोक लगाने के लिए याचिका लगाई थी। हाईकोर्ट में मुस्लिम पक्ष ने दलील दी थी कि, तहखाना लंबे समय से उनके अधिकार क्षेत्र में रहा है और ज्ञानवापी का हिस्सा है। डीएम समेत प्रशासन ने उसमें जल्दबाजी में तत्काल पूजा शुरू करा दी, जबकि इसके लिए समय देना था। ऐसे में तहखाने में पूजा तत्काल रोकनी चाहिए।
17 जनवरी को DM को सौंपा गया तहखाने का जिम्मा
17 जनवरी को कोर्ट ने तहखाने का जिम्मा DM को सौंप दिया था। कोर्ट के आदेश पर DM ने मुस्लिम पक्ष से तहखाने की चाबी ले ली थी। 7 दिन बाद यानी 24 जनवरी को DM की मौजूदगी में तहखाने का ताला खोला गया था।
1993 तक किया जाता था पूजा-पाठ
हिंदू पक्ष के वकील मदन मोहन यादव ने बताया कि 2023 में शैलेन्द्र कुमार पाठक ने अर्जी दाखिल की थी कि मंदिर के दक्षिण तरफ के तहखाने में स्थित मूर्ति की पूजा की जा रही थी, लेकिन दिसंबर 1993 के बाद पुजारी व्यास को बैरिकेडिंग एरिया में प्रवेश करने से रोक दिया गया, जिसके कारण उक्त परिसर का राग-भोग का अनुष्ठान भी बंद हो गया। आवेदक ने कहा कि इस बात के पर्याप्त आधार हैं कि पुजारी व्यासजी ब्रिटिश शासन के दौरान भी वंशानुगत आधार पर उक्त स्थान पर काबिज थे और दिसंबर 1993 तक उक्त भवन में पूजा करते थे। दलील दी गई कि तहखाने में मौजूद मूर्तियों की नियमित रूप से पूजा करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने बिना किसी कानूनी अधिकार के दिसंबर 1993 से बेसमेंट के अंदर पूजा बंद करा दी है।
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