
भाद्रपद मास में श्वेतांबर और दिगंबर समाज के पर्युषण पर्व मनाए जाते हैं। श्वेतांबर के व्रत समाप्त होने के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं। श्वेतांबर पंथ का पर्युषण पर्व 8 दिन (24 अगस्त-31 अगस्त) तक चलता है। वहीं, दिगंबर जैन ये पर्व 10 दिन (31 अगस्त-9 सितंबर) तक मनाते हैं। इस दौरान जैन धर्म के अनुयायी उपवास रख त्याग, तपस्या और साधना करते हैं।
पर्युषण पर्व का अर्थ क्या है ?
पर्युषण का अर्थ है ‘एक साथ रहना और एक साथ आना’। ये एक ऐसा समय है जब जैन अध्ययन और उपवास की शपथ लेते हैं। ये पर्व अपनी इंद्रियों पर काबू पाने और आत्मशुद्धि के लिए मनाया जाता है। जैन पंथ में अहिंसा और आत्मा की शुद्धि का विशेष महत्व है। पर्युषण पर्व में 10 धर्मों – उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन एवं उत्तम ब्रह्मचर्य का पालन कर आत्म शुद्धि की जाती है।
कैसे रखा जाता है पर्युषण का व्रत ?
जैन धर्म का मुख्य त्यौहार पर्युषण पर्व है। इस दौरान व्रत-उपवास रखते हैं। शाम को सूर्यास्त के बाद व्रतधारी भोजन नहीं करते। इस अवधि में ऐसा भोजन किया जाता है, जो मन और शरीर को नियंत्रण में रख सके।
जानें पर्युषण पर्व से जुड़ी खास बातें
- जैन धर्मावलंबी इस पर्व के दौरान धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं।
- पर्युषण पर्व की अवधि में किया दान कई गुना फल प्रदान करता है।
- पर्युषण पर्व में व्यक्ति को अपने द्वारा किए बुरे कर्मों से उबरने के लिए खास अवसर मिलता है।
- ये पर्व जीओ और जीने दो की राह पर चलने की प्रेरणा देता है।
- इस पर्व में अपने द्वारा की गई गलतियों पर विचार कर क्षमा मांगी जाती है।
- पर्युषण पर्व आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करता है। इसलिए इस दौरान अहिंसा यानी किसी को दूख, कष्ट ना पहुंचाएं, सत्य के मार्ग पर चलें, चोरी ना करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना ही जैन धर्म के सिद्धांतों को रेखांकित करता है।
(नोट : यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)