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पहले बच्चों में होने दें भाषा का विकास, तभी कराएं पब्लिक स्पीकिंग की तैयारी

अब 5 से 8 साल के बच्चों पर आ रहा कम उम्र में स्टेज फियर खत्म करने का दबाव

बच्चों को क्रिएटिव लर्निंग का माहौल देने के लिए पैरेंट्स प्रयास करते हैं, लेकिन बहुत छोटी उम्र से अब बच्चों के ऊपर पब्लिक स्पीकिंग और स्टेज फियर खत्म करने के दवाब डाले जा रहे। 5 से 8 साल तक के बच्चों के पैरेंट्स को सोशल मीडिया पर आ रहे विज्ञापनों के जरिए डराया जा रहा है कि कब तक दूसरों को स्टेज पर देखकर तालियां बजाते रहेंगे। बच्चों को अंदर इस हीनभावना का विकास किया जा रहा है कि उन्हें 5 से 8 साल की उम्र में पब्लिक स्पीकिंग नहीं सीखी तो वे पीछे रह जाएंगे। बच्चों को बनाए बेस्ट ओरेटर और बेस्ट पब्लिक स्पीकिंग क्लास जैसे विज्ञापन पैरेंट्स के फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया हैंडल्स पर खुलते हैं। एनईपी के मुताबिक पांच से 10 साल की उम्र में बच्चे अपनी मातृभाषा सीखते हैं, न कि सीधे मंच पर खड़े होकर बोलना।

13 साल की उम्र के बाद शुरू करें तो बेहतर

13 साल की उम्र के बाद चाहें तो पब्लिक स्पीकिंग क्लास की मदद ले सकते हैं। पब्लिक स्पीकिंग की मदद से बच्चे को यह समझ आता है कि वो जो महसूस कर रहा है, उसे कैसे और कहां बोलना है और उसका बोलना क्यों जरूरी है। पब्लिक स्पीकिंग में प्रेजेंटेशन तैयार करना और प्लानिंग करना शामिल होता है। यह ओरेटरी का भी एक रूप है, जहां भाषण के दौरान विराम, अभिव्यक्ति और भावनाओं जैसी सभी बारीकियों का उपयोग करके एक प्रवाह में प्रस्तुत किया जाता है। इससे छात्रों में प्रवाह को बढ़ावा मिलता है और शब्दावली का विस्तार होता है। हालांकि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में कथा- कहानियों के माध्यम से बच्चों की भाषा का विकास करने की बात की गई है, लेकिन नया चलन हीन भावना और भविष्य का डर दिखाकर सीखने की बात कर रहा है।

छोटे बच्चों पर न डालें दबाव

हम लाइब्रेरी में स्टोरीटेलिंग के माध्यम से बच्चों की लिसनिंग स्किल्स को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। बच्चों को उनके स्वाभाविक तरीके से बोलने को मोटिवेट करते हैं। जब बच्चे सुनते हैं तो वे खुद ब खुद बोलने के लिए प्रेरित होते हैं। पांच से 8 साल के बच्चों के ऊपर परफेक्ट ढंग से पब्लिक स्पीकिंग का प्रेशर नहीं होना चाहिए, बल्कि बोलने की उनकी खुद की शैली विकसित होना चाहिए। – यतीश भटेले, मैनेजर, स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी

बचपन को इस ट्रैप से मुक्त रखें

बच्चों पर अलग-अलग तरह की विधाएं सीखने का प्रेशर है। अब नया ट्रेंड आया है, पब्लिक स्पीकिंग का। यानी बच्चे को किसी न किसी तरह से कुछ न कुछ सीखते रहने के लिए मार्केट में हर दिन कुछ नया आ जाता है। यह ठीक है कि पब्लिक स्पीकिंग स्किल्स जरूरी है लेकिन बहुत छोटे बच्चों को इस ट्रैप से मुक्त रखें। 12 साल की उम्र उसके बाद चाहें तो पब्लिक स्पीकिंग क्लास भेज सकते हैं। – डॉ. शिखा रस्तोगी, मनोविशेषज्ञ

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