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कुपोषण के खिलाफ जंग लड़ रही झाबुआ की मोटी आई

आयुर्वेदिक तेल की मालिश बनी वरदान, अब तक 807 बच्चे स्वस्थ

विक्रांत गुप्ता-भोपाल। नवाचारों के लिए पहचाने जाने वाला झाबुआ जिला राजस्थान के उदयपुर में छा गया। केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्रालय के चिंतन शिविर में मप्र की महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने यहां के कुपोषण दूर करने के लिए अपनाए ‘मोटी आई’ मॉडल के बारे में बताया। मोटी आई यानी बड़ी मां, ये मॉडल उन अति कुपोषित बच्चों के लिए वरदान बन गया है, जिनके माता-पिता बच्चे की देखभाल नहीं कर पाते।

झाबुआ जिले की कलेक्टर नेहा मीना के इस नवाचार से बिना किसी बजट के झाबुआ जिले में 1950 गंभीर कुपोषित बच्चों में से अब तक करीब 807 बच्चे सामान्य पोषण की श्रेणी में आ गए हैं। ‘मोटी आई’ उन बच्चों के लिए वरदान बन गई है जिनके माता-पिता पलायन कर बच्चों को घर के बुजुर्ग के पास छोड़ गए हैं।

स्वस्थ बच्चे की मां को बनाया जाता है मोटी आई

इस नवाचार को कलेक्टर नेहा मीना द्वारा महिला बाल विकास विभाग, स्वास्थ्य व आयुष विभाग के संयुक्त सहयोग से संचालित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत गांव की एक ऐसी महिला को चुना जाता है, जिसका बच्चा स्वस्थ है। इसके बाद आयुष विभाग द्वारा उन्हें बला तेल की मालिश सहित अन्य विशेष प्रशिक्षण देता है। फिर बच्चे की देखभाल का जिम्मा उन्हें सौंप दिया जाता है। मोटी आई कुपोषित बच्चों की आयुर्वेद के अनुसार तेल से नियमित मालिश करती है। साथ ही स्थानीय सहयोग से बच्चों को विशिष्ट पौष्टिक आहार दिया जाता है।

ऐसे आया नवाचार का विचार

ढाढनिया की शिवानी गंभीर कुपोषण श्रेणी में थी। उसका वजन 3.1 किलो और लंबाई 56 सेमी थी। शिवानी की मां की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। उसने बेटी को अपना दूध नहीं पिलाया। तब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने शिवानी को एनआरसी मेघनगर में एडमिट किया, पर 7-8 माह बाद शिवानी की हालत फिर खराब हो गई। उसी दौरान कलेक्टर नेहा मीना ने कुपोषण मुक्त झाबुआ के लिए ‘मोटी आई’ का नवाचार किया। शिवानी के लिए एक मोटी आई सामा वसुनिया की नियुक्ति हुई। सामा को आयुष विभाग ने तेल मालिश का प्रशिक्षण दिया। सात माह बाद शिवानी का वजन 7 किलो हो गया और लंबाई 68.5 सेमी हो गई।

जिले में लागू हुआ प्रोजेक्ट

झाबुआ कलेक्टर नेहा मीना ने बताया कि वे एनआरसी जाती थीं। वहां बच्चों की स्थिति को लेकर उनके मन में शुरुआती ख्याल आया पर परेशानी यह थी कि इस क्षेत्र से पलायन बहुत होता है और बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र उनके दादा-दादी लेकर आते थे। उन्होंने बताया कि इस जनजातीय क्षेत्र में कम्युनिटी मॉडल बनाने का सोचा और 1950 बच्चों के लिए 1325 मोटी आई का चयन किया। टेक होम राशन और गुड़ को मिलाकर केंद्र में ही लड्डू बनवाए और वहीं पर बच्चों को खिलवाए।

प्रदेश में कुपोषण की स्थिति

  • आंगनबाड़ियों में 62, 88, 073 बच्चों का रजिस्ट्रेशन है।
  • 5, 41,063 बच्चे कुपोषित हैं।
  • सबसे खराब स्थिति धार और खरगोन की है।
  • धार में 35, 950 बच्चे अंडरवेट।

कलेक्टर मैडम के निर्देश पर हमने जिले में कुपोषित बच्चों का सर्वे कराया था। इसमें 1950 कुपोषित और अतिकुपोषित की श्रेणी में पाए गए थे। अब तक 807 बच्चे सामान्य श्रेणी में आ चुके हैं। -आरएस बघेल, जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला एवं बाल विकास, झाबुआ

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