
महाधिवक्ता कार्यालय कोई सरकार का विभाग नहीं है और यहां होने वाली नियुक्तियां नियुक्तियां संविदा आधारित होती हैं, इसलिए सरकारी वकीलों की नियुक्ति पर आरक्षण लागू करने के लिए राज्य शासन को बाध्य या निर्देशित नहीं किया जा सकता। इस टिप्पणी के साथ सरकारी वकीलों की नियुक्ति मामले में हाईकोर्ट ने आरक्षण देने से इनकार कर दिया है।
दायर की गई थी ये याचिका
बता दें कि हाईकोर्ट में अपील दायर कर की मांग की गई थी कि सरकारी वकीलों की नियुक्ति में एससी एसटी और ओबीसी को आरक्षण अधिनियम 1994 के नियम को लागू किया जाए। पहले भी हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने सरकारी वकीलों की नियुक्ति में आरक्षण नियम लागू करने से इंकार कर दिया था। उसी आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट अपील दायर की गई थी।
रिट अपील में दिया गया ये तर्क
पूर्व के फैसले पर दायर की गई रिट अपील में तर्क दिया गया कि आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा दो की परिभाषा खंड में महाधिवक्ता कार्यालय को स्थापना (एस्टेब्लिशमेंट) माना जाएगा। इसलिए शासकीय अधिवक्ता लोक पद माना जाए। इसमें आरक्षण के प्रविधानों का पालन होना चाहिए।
जस्टिस शील नागू व जस्टिस अरुण कुमार की बैंच का फैसला
हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में आगे कहा कि एजी ऑफिस और सरकार के बीच प्रोफेशनल रिलेशनशिप होते हैं। महाधिवक्ता कार्यालय कोई सरकारी ऑफिस नहीं है जहां पर इस तरह से आरक्षण नियम लागू किया जाए। हाईकोर्ट की जस्टिस शील नागू और जस्टिस अरुण कुमार शर्मा की डिवीजन बेंच ने कहा कि एजी ऑफिस के द्वारा सरकारी वकीलों की नियुक्ति क्योंकि संविदा आधार पर हो सकती हैं इसलिए हम आरक्षण नियमों को लागू करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।
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