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क्रशर से खतरे में ग्वालियर की 255 करोड़ साल पुरानी रॉक्स

पृथ्वी के क्रमिक विकास के प्रमाण देने वाले जियोलॉजिकल प्रूफ और चट्टानें सालों से अनदेखी का शिकार

धर्मेन्द्र त्रिवेदी-ग्वालियर। लगभग 255 करोड़ वर्ष से धरती के विकास का बेशकीमती खजाना समेटे अंचल बीते 40 वर्ष से 350 रुपए प्रति टन कमाने के लिए बर्बाद हो रहा है। यह खजाना ग्वालियर बेसिन और बिजावर बेसिन को समझने के लिए जियोलॉजी के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण सोर्स है। लेकिन यह खजाना संरक्षित न किए जाने से खत्म होने की कगार पर है। यहां पृथ्वी के विकास के प्रमाण ढूंढना मुश्किल हो जाएंगे।

बहुत महत्वपूर्ण है क्षेत्र

160 करोड़ वर्ष पुराने पेलिया मेसो प्रोटेरोजाइक ग्वालियर शैल समूह को पार, बालूकाश्म, सिंगापुर-सिलटा, सिथौली, नयागांव एवं बरेली फार्मेशन में वर्गीकृत किया गया है। 255 करोड़ वर्ष पुराने आर्कियन- प्रोटोरोजोइक काल में बनीं सेंडिमेंटेड रॉक, क्रस्टल हिस्ट्री, वायुमंडलीय परिवर्तन, मोरार फॉर्मेशन ऑक्सीजीनेशन इवेंट्स की स्टडी के लिए महत्वपूर्ण है। बेसिन की टैक्टोनिक संरचना कैसे प्रभावित हुई यहां यह स्टडी गहराई से हो सकती है।

एक नजर में प्रमाण

ग्वालियर किले के पास 255 करोड़ साल पुराने सेंड स्टोन में हॉरिजेंटल काला गोल पत्थर, आयरन मिक्स शैल, ग्रेफाइट भी मिलता है।

विकास का गवाह है

मैनें बुंदेलखंड क्रेटन के परिवेश पर व्यापक शोध किया है। ग्वालियर बेसिन में पृथ्वी के प्रारंभिक घटनाक्रम का महत्वपूर्ण भंडार है। क्रेटोनिक और क्रेटोनिक एंड सुपरकॉन्टिनेंटल प्रोसेसेज से जोड़ने और अर्ली कॉन्टिनेंटल क्रस्ट फॉर्मेशन और रीसोर्स पोटेंशियल को समझने, अनुसंधान अत्यंत आवश्यक है। -डॉ. सुमित मिश्रा, पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च फेलो- नेशनल यूनिवर्सिटी-मेक्सिको

दोबारा नहीं मिलेगी

माइनिंग से भूसंपदा स्थाई रूप से नष्ट होती है, इसे हम दोबारा उपजा नहीं सकते। करोंड़ो वर्ष पुराने ग्वालियर ग्रुप की चट्टानें स्थाई रूप से नष्ट हो रहीं हैं। खनिज संपदा का साइंटिफिक, सुनियोजित व सुरक्षित उत्खनन किया जाना आवश्यक है। -प्रो. एसएन महापात्रा, एचओडी- अर्थ साइंस-एसओएस-जेयू

अभी माइनिंग का क्षेत्र बहुत सीमित है। यहां सेडिमेंटेड रॉक्स हैं, ब्रेसिया और कांग्लोमेटस पाए जाते हैं। एक्स्प्लोशन में जो साक्ष्य आएंगे उनके आधार पर भविष्य के अध्ययन के रास्ते खुलेंगे। -प्रदीप भूरिया, माइनिंग ऑफिसर

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