
अजीत तिवारी, भोपाल। राजधानी समेत पूरे मप्र में विकास कार्यों के नाम पर पेड़ों की कटाई तेजी से हो रही है। नतीजा ग्रीन कवर तेजी से घटता जा रहा है। इससे पर्यावरण पर काम करने वाले फिक्रमंद हैं। पिछले 9 साल में भोपाल स्थित एनजीटी के सेंट्रल जोन बेंच में भोपाल से 100 से अधिक और मप्र से 780 याचिकाएं पर्यावरण को लेकर दायर की गईं। भोपाल के करीब 50 फीसदी मामलों की सुनवाई करते हुए एनजीटी ने संबंधित संस्थाओं को आदेशों का कड़ाई से पालन करने को कहा, लेकिन कुछ को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर आदेशों पर अमल ही नहीं हुआ। हालांकि, भोपाल के झील संरक्षण प्रकोष्ठ के प्रभारी संतोष गुप्ता का कहना है कि 227 अवैध निर्माण चिह्नित किए हैं। इन्हें तोड़ने के लिए पुलिस का सहयोग मांगा है।
सेंट्रल जोन में मध्यप्रदेश से सबसे ज्यादा याचिकाएं
एनजीटी के सेंट्रल जोन में मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्य शामिल हैं। सेंट्रल जोन में सबसे अधिक 60 फीसदी मामले मप्र के, 30 फीसदी राजस्थान और सबसे कम 10 फीसदी छत्तीसगढ़ के हैं। एनजीटी की स्थापना के 9 साल में अब तक मप्र से करीब 780 मामले ही पहुंचे हैं। इस लिहाज से हर साल औसतन 86 मामले और एक महीने में करीब 8 से 9 मामले ही एनजीटी की दहलीज तक पहुंचते हैं।
भोपाल से संबंधित एनजीटी के कुछ आदेश और अमल की स्थिति
सीवेज फार्मिंग : नालों के किनारे उग रहीं सब्जियां
2014 में भोपाल के आसपास सीवेज के पानी से उगाई जाने वाली सब्जियों को लेकर एनजीटी में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। ऐसी सब्जियों से सेहत के नुकसान का हवाला देते हुए रोक लगाने की मांग की गई थी। एनजीटी ने प्रशासन को इस पर रोक के आदेश दिए थे। तब प्रशासन ने शाहपुरा लेक से सटे क्षेत्रों में नाले के किनारे लगी फसल नष्ट की थी।
वर्तमान स्थिति: अब यहां पर दोबारा से सब्जियां उगाई जा रही हैं।
नदी क्षेत्र में अतिक्रमण : फॉर्म हाउस बन गए
वर्ष 2014 में कलियासोत नदी क्षेत्र में अतिक्रमण को लेकर याचिका दायर की गई थी। एनजीटी ने कलियासोत नदी के किनारे निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने के आदेश दिए थे। तब प्रशासन ने थोड़ी बहुत कार्यवाही की, लेकिन बाद में मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
वर्तमान स्थिति: कलियासोत क्षेत्र में फॉर्म हाउस बन गए हैं। कॉलोनिया कट गई हैं और बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हो रहे हैं।
बड़ी झील : भदभदा के पास अतिक्रमण चिह्नित
2017-18 में भदभदा के आसपास बड़ी झील में अतिक्रमण हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने जिला प्रशासन , प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नगर निगम को कार्रवाई के आदेश दिए थे।
वर्तमान स्थिति: तीनों विभाग ने संयुक्त रिपोर्ट बनाकर एनजीटी को सौंप दी है। यहां 227 मकान चिह्नित किए गए हैं, लेकिन अब तक इन्हें तोड़ा नहीं गया है।
पर्यावरण अदालत के दरवाजे कम खटखटा रहे लोग
भोपाल में एनजीटी के सेंट्रल जोन का दफ्तर है। इसमें पहली सुनवाई 8 अप्रैल 2013 को हुई थी। 9 साल में इस ट्रिब्यूनल में अब तक 1,300 से अधिक मामले आए हैं और लगभग 150 मामले पेंडिंग हैं।
5 साल में कम हुए मामले
2017-18 से एनजीटी में केसेस कम हुए हैं, क्योंकि इनकी फिजिकल हियरिंग कम हुई है। कुछ मामलों के निराकरण में जल्दबाजी से भी पक्षकार निराश हुए हैं। एनजीटी में कमेटी बनाकर केस ट्रांसफर कर दिए जाते हैं, जिससे न्याय में देरी होती है।
– ओमशंकर श्रीवास्तव, एनजीटी मामलों के वकील
आदेश पर अमल नहीं
एनजीटी में हमारी तरफ से जहरीला कचरा, जहरीले पानी, नदी और तालाब की जमीन पर अतिक्रमण जैसे कई मामलों में केस लगाए गए। अधिकतर मामलों में आदेश दिए गए, लेकिन प्रशासन को फटकार के बाद भी आदेशों पर पूरी तरह से अमल और क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।
-सुभाष सी पांडे, पर्यावरणविद्
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