भोपालमध्य प्रदेश

MP News: विदिशा के पूर्व BJP पार्षद ने पत्नी और 2 बच्चों सहित खाया जहर, बेटों की लाइलाज बीमारी से थे परेशान

विदिशा। मध्य प्रदेश के विदिशा में पूर्व भाजपा पार्षद संजीव मिश्रा ने पत्नी और दो बेटों के साथ जहर खाकर खुदकुशी कर ली। जानकारी के मुताबिक, मिश्रा दंपती अपने दोनों बेटों की लाइलाज बीमारी से परेशान थे। खुदकुशी से पहले उन्होंने फेसबुक पर एक मार्मिक पोस्ट डाला था।

परिचित के घर पहुंचने पर सामने आई खुदकुशी की बात

जानकारी के मुताबिक, गुरुवार शाम लगभग छह बजे मिश्रा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘शिकवा नहीं किसी से किसी से गिला नहीं, भाग्य में नहीं था हमको मिला नहीं, ईश्वर दुश्मन के बच्चों को भी न दें यह बीमारी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी डीएमडी।’

पोस्ट देखने के बाद शाम करीब 6:45 बजे उनका एक परिचित घर गया तो बाहर से दरवाजा बंद था। घर का दरवाजा तोड़कर अंदर देखा तो भाजपा के दुर्गानगर के मंडल उपाध्यक्ष और पूर्व पार्षद संजीव मिश्रा (45), उनकी पत्नी नीलम मिश्रा (42), बेटा अनमोल (13) तथा सार्थक (7) बेहोश हालत में मिले। तुरंत चारों को जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां दोनों बेटों और बाद में संजीव मिश्रा, फिर उनकी पत्नी ने दम तोड़ दिया।

मौके से सुसाइड नोट बरामद

रिपोर्ट्स के मुताबिक, मौके पर एक सुसाइड नोट भी मिला है। जिसमें मिश्रा ने लिखा है कि वह अपने बच्चों को नहीं बचा पा रहे हैं, इसलिए अब वह जीवित नहीं रहना चाहते हैं। पुलिस ने इस संबंध में मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। बता दें कि, संजीव मिश्रा वर्तमान में पीतलमिल के पास जानता भोजनालय नाम का भोजनालय चलाते थे।

कलेक्टर उमाशंकर भार्गव ने बताया संजीव मिश्रा बच्चों को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नाम की जेनेटिक बीमारी थी। इसका कोई इलाज नहीं है, जिसके चलते उन्होंने यह कदम उठाया।

क्या है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी

मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक ऐसी बीमारी है, जिसमें इंसान की शक्ति क्षीण हो जाती है। मसल्स कमजोर होने के साथ सिकुड़ने लग जाती हैं। बाद में यह टूटने लगती हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, एक अनुवांशिक एवं गंभीर बीमारी है जो समय के साथ बिगड़ती जाती है। जिसमें रोगी में लगातार कमजोरी आती है, मांस पेशियों का विकास रुक जाता है। डीएमडी मुख्य रूप से लड़कों को प्रभावित करता है।

इसका अब तक कोई इलाज नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक लंबे समय तक चलने वाले इसके सहायक उपचार के लिए हर साल 2-3 करोड़ रुपए तक खर्च आता है।

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