
नई दिल्ली। टिड्डियों के दहशत को लेकर किसानों के लिए राहत की खबर आई है। इस बार आशंका थी कि पाकिस्तान के रास्ते टिड्डियां राजस्थान में एंट्री कर सकती हैं, जिसे लेकर किसान चिंतित थे। टिड्डी नियंत्रण विभाग ने बॉर्डर इलाकों में सर्वे कराने के बाद यह बताया है कि इस बार पाकिस्तान से हवाएं ईरान की दिशा में चल रही हैं। इस वजह से टिड्डियों के रास्ते में भटकाव आया है। ये टिड्डियां 6 देशों से उड़कर लाखों की संख्या में पाकिस्तान के रास्ते भारत में आती थीं। इस वजह से पश्चिमी राजस्थान में लाखों टन की फसल खराब होती थी।
10 मिनट में चट कर जाती हैं फसल
टिड्डियां चंद मिनटों में फसल के बड़े से बड़े भू-भाग को नष्ट कर देती हैं। ये मोरक्को से निकलकर इथोपिया, ईरान, इजिप्ट, अफगानिस्तान, पाकिस्तान होते हुए भारत में दाखिल होती हैं। अपने वजन से दो गुना चावल खाने की क्षमता रखने वाली टिड्डियां एक दिन में 35 हजार व्यक्तियों जितना खाना हजम कर जाती हैं। 2020 में इनके द्वारा फसलों पर बड़ा हमला देखने को मिला था, जिसमें राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ जैसे 9 राज्य प्रभावित हुए थे। टिड्डियों के इन हमलों की शुरुआत साल 1812 से ही हुई थी।
125-150 किमी की रफ्तार से उड़ सकती टिड्डियां
फसलों के लिए सबसे खतरनाक माने जाने वाली ये टिड्डियां 150 किलोमीटर प्रति घंटे के रफ्तार से उड़ सकती हैं। यूनाइटेड नेशन के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) के मुताबिक टिड्डियां रेतीले इलाकों में पाई जाती हैं। इनका वजन करीब 2 से 3 ग्राम होता है। ये इतनी छोटी होती हैं कि एक किमी के दायरे में ही इनकी संख्या 15 करोड़ से ज्यादा हो सकती है। इनका झुंड एक किलो से लेकर सैकड़ों किमी क्षेत्र तक फैला हो सकता है।
नमी पसंद करती हैं टिड्डियां
ये टिड्डियां अंडे देने के लिए अनुकूल मौसम ढूंढती हैं। एक बार में ही एक टिड्डी 200 अंडे देती है। इस लिहाज से गुजरात और राजस्थान का मौसम जुलाई से लेकर नवंबर तक बिल्कुल अनुकूल होता है। बलुई मिट्टी होने के कारण यहां अंडा देना सुरक्षित है। इसी वजह से विशेषकर इन राज्यों पर टिड्डियों का सबसे अधिक खतरा होता है।
दो सदी से हमला झेल रहे भारतीय किसान
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डायरेक्टोरेट ऑफ प्लांट प्रोटेक्शन, क्वॉरेंटाइन एंड स्टोरेज के मुताबिक, टिड्डियों के हमले की शुरुआत 1812 से हुई थी। 1926 से लेकर 1931 के दौरान टिड्डियों के हमले में 10 करोड़ रुपए, 1940 से 1946 और 1949 से 1955 के बीच भी टिड्डियों के हमले से 2-2 करोड़ का नुकसान हुआ। 1959 से 1962 के बीच भी इनके हमले से काफी नुकसान हुआ था। हालांकि 1962 से टिड्डियों का कोई ऐसा हमला नहीं हुआ जो लगातार तीन या चार सालों तक चला हो। 1998, 2002, 2005, 2007 और 2010 में भी टिड्डियों के हमले हुए थे, लेकिन इसका कोई खास नुकसान नहीं हुआ था।
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