
भोपाल। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पुण्य स्मरण का पखवाड़ा शनिवार से शुरू हो रहा है। पितृपक्ष के पहले दिन आज सुबह राजधानी में शीतलदास की बगिया समेत कई अन्य घाटों पर पहुंचकर लोगों ने पितरों का तर्पण किया। इस दौरान सबसे ज्यादा भीड़ शीतलदास की बगिया घाट पर नजर आई। प्रशासन ने यहां भी सुरक्षा के पूरे इंतजाम किए हैं। सुबह से ही गोताखोरों को तैनात किया गया।
पितृपक्ष शुभ कार्य बंद, इन चीजों को ना खरीदें
पितृपक्ष 10 सितंबर से शुरू हो गए हैं और इनका समापन 25 सितंबर 2022 को होगा। सनातन परंपरा के अनुसार लोग पूर्वजों को नियत तिथि पर श्राद्ध कर्म से स्मरण करेंगे। इसके साथ ही सोलह दिनों तक सभी शुभ कार्य बंद हो जाएंगे। इन दिनों में लोग कपड़ा, सोना, चांदी, भवन, भूमि या वाहन की खरीदी भी नहीं करेंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा शनिवार 10 सितंबर को होगा। जिस तिथि में पितर देव दिवंगत हुए होते है, उसी तिथि पर पितृपक्ष में तिथियों के अनुसार श्राद्ध कर्म एवं तर्पण किया जाना शास्त्रसम्मत है।

अमावस्या के दिन पितरों को देते हैं विदाई
आज से पूरे सोलह दिनों के लिए बाजारों की रौनक गायब हो जाएगी। इसके अलावा राजधानी में शीतलदास की बगिया व खटलापुरा में लोग पूर्वजों को जल तर्पण करते नजर आएंगे। गुरुजी ने बताया कि 25 सितंबर को श्राद्ध पक्ष का समापन होगा। 26 सितंबर से मां भवानी की आराधना का पर्व शुरू हो जाएगा। आश्विन मास में पंद्रह दिन श्राद्ध के लिए माने गए हैं। पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक का समय पितरों को याद करने के लिए मनाया गया है।
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सबसे पहला श्राद्ध पूर्णिमा से शुरू होता है। इस दिन पहला श्राद्ध कहा जाता है। जिन पितरों का देहांत पूर्णिमा के दिन हुआ हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा तिथि के दिन किया जाता है। इन 15 दिनों में सभी अपने पितरों का उनकी निश्चित तिथि पर तर्पण, श्राद्ध करते हैं। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देकर प्रस्थान करते हैं। अमावस्या के दिन पितरों को विदाई दी जाती है।
इन तिथियों में होगा श्राद्ध एवं तर्पण
- पूर्णिमा का श्राद्ध एवं तर्पण 10 सितंबर दिन शनिवार।
- प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण 11 सितंबर दिन रविवार।
- द्वितीया का श्राद्ध एवं तर्पण 12 सितंबर दिन सोमवार।
- तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण 13 सितंबर दिन मंगलवार।
- चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण 14 सितंबर दिन बुधवार।
- पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण 15 सितंबर दिन गुरुवार।
- षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण 16 सितंबर दिन शुक्रवार।
- सप्तमी का श्राद्ध एवं तर्पण 17 सितंबर दिन शनिवार।
- अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण 18 सितंबर दिन रविवार, महालक्ष्मी हाथी पूजा के साथ।
- नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण 19 सितंबर दिन सोमवार।
- दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण 20 सितंबर दिन मंगलवार।
- एकादशी का श्राद्ध तर्पण 21 सितंबर दिन बुधवार।
- द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण 22 सितंबर दिन गुरुवार।
- त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण 23 सितंबर दिन शुक्रवार।
- चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण 24 सितंबर दिन शनिवार।
- अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण 25 सितंबर रविवार को पितृमोक्ष अमावस्या के साथ समापन होगा।
पितृपक्ष का महत्व
पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यता है कि हर मनुष्य का जन्म पिंडज योनि के तहत होता है, इसलिए पिंड का रूप में ही उसका तर्पण भी किया जाता है। जिन लोगों को अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के बारे में जानकारी नहीं हैं, वे लो अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकते हैं। कुंडली में पितृ दोष दूर करने के लिए पितृपक्ष का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इन दिनों पितरों को खुश करने के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं।
आत्मा की शांति के लिए दान का महत्व
पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए दान का धार्मिक महत्व है। पितृपक्ष 15 दिन की अवधि के लिए होता है और इस दौरान पूर्वजों का आशीर्वाद पाने के लिए पूरे विधि विधान के साथ उनका श्राद्ध किया जाता है। हर साल ही पितृपक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक रहता है। इस अवधि के दौरान तिथि के अनुसार अपने पूर्वजों का श्राद्ध किया जाना चाहिए।
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