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पारंपरिक आर्ट को जीवित रखने के लिए बना गोंड ट्राइबल आर्टिस्ट, अब तक 9 राज्यों में लग चुकी है एग्जीबिशन

जनजातीय संग्रहालय में 46वीं शलाका चित्र प्रदर्शनी का आयोजन, गोंड चित्रकार संतू तेकाम ने अपनी यात्रा साझा करते हुए बताया

सबके अपने-अपने सपने होते हैं, लेकिन मेरा सपना था गोंड ट्राइबल आर्टिस्ट बनने का, क्योंकि मेरे परिवार में अधिकांश सभी लोग आर्टिस्ट हैं, जिनको देखकर में बड़ा हुआ। मैंने पांचवीं कक्षा से गोंड ट्राइबल आर्ट को सीखना शुरू कर दिया था। यह कहना है चित्रकार संतू तेकाम का, जो नौकरी करने के बजाए अपने पारंपरिक आर्ट को जीवित रखने के लिए ट्राइबल आर्टिस्ट बने। संतू ने बताया कि वे डिंडौरी स्थित पाटनगढ़ गाम्र के रहने वाले हैं, जहां से गोंड ट्राइबल आर्ट की शुरुआत हुई थी। उनके दादा चित्रकार स्व. जनगढ़ सिंह से संतू को प्रेरणा मिली। इसके बाद भाभी राधा तेकाम ने बहुत कम उम्र से ही चित्रकारी की बारीकियां सिखाना शुरू कर दिया था। चित्रकार संतू की पेंटिंग्स अब तक 9 राज्यों में प्रदर्शित की जा चुकी हैं। संतू के परिवार में उनकी भाभी के अलावा बड़े भाई रमेश तेकाम, मौसा सुरेश कुमार धुर्वे भी गोंड ट्राइबल आर्टिस्ट हैं। जनजातीय संग्रहालय में चित्रकार संतू तेकाम की एग्जीबिशन 46वीं शलाका जनजातीय चित्र प्रदर्शनी के तहत ‘लिखंदरा प्रदर्शनी दीर्घा’ में लगाई गई है, जो 29 फरवरी तक चलेगी।

जंगलों में जाकर देखने के बाद बनाई पेंटिंग्स

मुझे पेंटिंग करना तो आ गया था, लेकिन मेरी पेंटिंग में वो बात नहीं थी। मुझे अपनी शैली विकसित करनी थी। इसके लिए मैं जंगलों में गया, तब कहीं जाकर मेरी खुद की शैली विकसित हुई। इसके बाद मैंने नेचर और कहानियों पर पेंटिंग बना शुरू किया। मेरी एक खास पेंटिंग थी, जिसमें मैंने जंगल के राजा की कहानियों को बनाया है।

पेपर शीट और कैनवास पर बनाते हैं चित्र

चित्रकार संतू तेकाम ने बताया कि वह पेपर शीट और कैनवास पर एक्रेलिक कलर से गोंड चित्र बनाते हैं। उनके यह चित्र 500 से लेकर 25 हजार रुपए तक में बिकते हैं। एक छोटे चित्र को बनाने में उन्हें दो-तीन घंटे लगते हैं, लेकिन कैनवास पर चित्र बनने में 15 दिन से अधिक समय लगता है। दिल्ली, बेंगलुरु, केरल, चेन्नई, मुंबई, भोपाल, देहरादून, शिमला, जयपुर सहित कई जगहों में एकल एवं संयुक्त चित्रकला प्रदर्शनियों में भाग लिया है और विभिन्न कला संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है।

10 साल का था तब शुरू की पेंटिंग सीखना

मैंने पढ़ाई के साथसाथ पेंटिंग सीखना शुरू किया था। तब मैं महज 10 साल का था। मेरी भाभी राधा ने मुझे पेपर शीट पर तीन महीने तक ड्राइंग बनने की प्रैक्टिस कराई। इसके बाद उन्होंने ड्राइंग में रंग भरवाए। इस दौरान मुझे मेरे बड़े भाई और मौसा जी का मागदर्शन भी प्राप्त हुआ। – संतू तेकाम, चित्रकार

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