
भोपाल। इंतजार की घड़ियां खत्म हुईं… गणपति बप्पा आ रहे हैं… गणेश चतुर्थी महोत्सव 7 से 17 सितंबर तक मनाया जाएगा। अगर बात सिर्फ भोपाल की करें, तो जगह-जगह गणेश जी के पंडाल सजेंगे और घर-घर बप्पा विराजेंगे। ऐसे में भोपाल में मिट्टी के इस्तेमाल से बनाई जा रही मूर्तियों की विशेष चर्चा है। यह इको फ्रेंडली होने के साथ ही साथ पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी लाभकारी है। आइए आपको दिखाते हैं गणेश उत्सव की क्या तैयारियां चल रही हैं…
मूर्ति बनाने की प्रक्रिया
मूर्ति कलाकार चंद्रशेखर तिवारी बताते हैं कि, मिट्टी की मूर्ति बनाने के लिए सबसे पहले बांस का स्ट्रक्चर बनाया जाता है। धान के पयार (पुआल) से गणेश जी की आकृति निर्मित की जाती है। इसके बाद मूर्ति निर्माण में मिट्टी की कुल चार लेपों का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें सबसे पहले पोछा मिट्टी, भूसे के मिश्रण से गलाकर बनी मिट्टी, बालू मिट्टी और आखिरी में कलकत्ता मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। मूर्ति बनाने के लिए यहां पश्चिम बंगाल से भी मूर्ति कारीगर आते हैं।
इको-फ्रेंडली होती हैं मूर्तियां
चंद्रशेखर आगे बताते हैं, पर्यावरण की सुरक्षा के लिहाज से इसमें किसी भी तरह के पीओपी का इस्तेमाल नहीं होता है। इसमें पूरी तरह से मिट्टी का ही इस्तेमाल किया जाता है। पीओपी के इस्तेमाल के बाद मूर्ति पत्थर का रूप ले लेती है और मूर्ति विसर्जन के बाद जलाशयों में प्रदूषण का कारण बनती है। इसके उलट मिट्टी की मूर्ति जलाशयों में आसानी से घुल जाती हैं। मूर्ती में प्रयोग किए जाने वाले रंग भी प्राकृतिक तरीके से तैयार किए जाते हैं। मिट्टी की 40 से 50 मूर्तियां बनाने में लगभग 4 से 5 महीने का समय लगता है।
मूर्तियों में झलकती हैं देश की उपलब्धियां
इस बार गणेश जी की प्रतिमा अयोध्या में विराजमान रामलला की मूर्ति से प्रभावित है। हर साल मूर्तियों में देश की उपलब्धियों की झलकियां मिलती हैं। जब देश को चंद्रयान मिशन में सफलता मिली थी तब मूर्तियों में उसकी झलक बनाई गई थी। लोगों की मांग के हिसाब से ही प्रतिमाओं को डिजाइन किया जाता है।
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