
Happy Holi. हर साल होली का त्योहार रंगों और खुशियों के साथ आता है और इस मौके पर घर-घर में बनने वाली गुजिया की मिठास हर किसी को लुभाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह स्वादिष्ट मिठाई, जिसके बिना होली अधूरी लगती है, असल में भारत की अपनी नहीं है? जी हां, गुजिया का इतिहास जितना लंबा है, उतना ही रोचक भी। आइए, इस होली पर जानते हैं गुजिया की उत्पत्ति और इसके होली से जुड़ाव की कहानी।
कहां से आई गुजिया
गुजिया आज भले ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुकी हो, लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि यह मिठाई तुर्किए से भारत आई थी। तुर्किए की मशहूर मिठाई बकलावा, जिसमें मैदे की परतों के बीच ड्राई फ्रूट्स, चीनी और शहद भरा जाता है, गुजिया की प्रेरणा मानी जाती है। बकलावा शाही परिवारों की पसंदीदा मिठाई थी और इसी के आधार पर भारत में गुजिया का जन्म हुआ।
13वीं शताब्दी में गुजिया का पहला जिक्र मिलता है, जब इसे धूप में सुखाकर खाया जाता था। समय के साथ इसमें बदलाव हुए और आज की स्वादिष्ट गुजिया हमारे सामने है। हालांकि, इसकी सटीक उत्पत्ति अभी भी रहस्य बनी हुई है।
भारत में गुजिया का पहला ठिकाना
भारत में गुजिया की शुरुआत का श्रेय उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र को दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहीं सबसे पहले मैदे और खोये से गुजिया बनाई गई थी। इसके बाद यह मिठाई राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में फैली और पूरे देश में लोकप्रिय हो गई। हर क्षेत्र ने इसमें अपने स्वाद का तड़का लगाया, जिससे गुजिया का स्वरूप और भी समृद्ध हुआ।
होली और गुजिया का खास रिश्ता
होली पर गुजिया बनाने और खाने की परंपरा की जड़ें वृंदावन से जुड़ी हैं। मान्यता है कि वृंदावन के प्रसिद्ध राधा रमण मंदिर में सबसे पहले होली के दिन भगवान कृष्ण को गुजिया का भोग लगाया गया था। यह मंदिर 1542 में बना था और देश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।
कहा जाता है कि फाल्गुन माह की पूर्णिमा पर आटे की लोई में चाशनी भरकर भगवान को अर्पित की गई थी। इसके बाद से ही होली और गुजिया का यह अनोखा कनेक्शन शुरू हुआ, जो आज तक कायम है।
आज भी जिंदा है परंपरा
आज मनाई जाने वाली इस होली पर भी गुजिया की मिठास हर घर में छाई रहेगी। यह सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि सदियों पुरानी संस्कृति और इतिहास का प्रतीक है। तो इस बार जब आप गुजिया का स्वाद लें, तो इसके पीछे की यह दिलचस्प कहानी भी याद कर लें।
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