
वॉशिंगटन डीसी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में आयात होने वाली सभी विदेशी कारों पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की है। यह नया टैरिफ 2 अप्रैल से प्रभावी होगा और 3 अप्रैल से इसकी वसूली शुरू हो जाएगी। ट्रंप का कहना है कि, यह फैसला अमेरिका में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए लिया गया है। हालांकि, इस फैसले का वैश्विक बाजार और ऑटो उद्योग पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
विदेशी कारों पर क्यों लगाया गया टैरिफ?
ट्रंप प्रशासन का मानना है कि, विदेशी कारों पर टैरिफ लगाने से अमेरिका में नए कारखाने खुलेंगे और स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। उनका तर्क है कि, कनाडा और मेक्सिको में बनने वाले ऑटो पार्ट्स और तैयार वाहन अब अमेरिका में ही बनाए जाएंगे। ट्रंप ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि, अगर कोई कंपनी अमेरिका में कारों का निर्माण करती है, तो उस पर कोई टैरिफ नहीं लगाया जाएगा।
व्हाइट हाउस के अनुसार, इस कदम से अमेरिका को हर साल 100 अरब डॉलर का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी और नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
अमेरिकी ग्राहकों के लिए महंगी हो सकती हैं कारें
विशेषज्ञों का मानना है कि, ट्रंप के इस फैसले से अमेरिका में कारों की कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है। वर्तमान में अमेरिका में नई कारों की औसत कीमत लगभग 49,000 अमेरिकी डॉलर है। अगर टैरिफ लागू होता है, तो विदेशी कारों की कीमत 12,500 डॉलर तक बढ़ सकती है। इससे अमेरिकी ग्राहकों को महंगी कारें खरीदनी पड़ेंगी, जिससे ऑटोमोबाइल सेक्टर की बिक्री में गिरावट आ सकती है।
अमेरिकी वाहन निर्माता कंपनियां कई ऑटो पार्ट्स और कच्चे माल को विदेशों से आयात करती हैं। ऐसे में टैरिफ लागू होने से उनकी लागत बढ़ेगी, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ेगा।
विदेशी नेताओं की प्रतिक्रिया
अमेरिका के इस फैसले पर दुनियाभर के देशों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
- कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने ट्रंप के इस फैसले को “सीधा हमला” बताया और कहा कि उनकी सरकार अपने वर्कर्स और कंपनियों की रक्षा करेगी।
- यूरोपीय कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डर लियेन ने भी इस फैसले पर नाराजगी जताई और कहा कि “टैरिफ व्यवसायों के लिए नुकसानदायक और ग्राहकों के लिए और भी बुरा होता है।”
- यूरोपीय संघ (EU) ने अमेरिकी निर्यात पर 26 बिलियन डॉलर के प्रतिशोधात्मक टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है।
- ब्रिटेन, जिसने 2023 में अमेरिका को 6.4 बिलियन पाउंड मूल्य की कारों का निर्यात किया था, इस टैरिफ से विशेष रूप से प्रभावित होगा।
भारत पर भी होगा असर
ट्रंप ने यह भी कहा है कि, अमेरिका “जैसे को तैसा” टैरिफ नीति लागू करेगा यानी भारत समेत सभी देशों पर टैरिफ बढ़ाए जाएंगे। ट्रंप का दावा है कि, भारत अमेरिका से 100% से ज्यादा टैरिफ वसूलता है, इसलिए अमेरिका भी अगले महीने से ऐसा ही करेगा। भारत का कुल विदेशी व्यापार का 17% से ज्यादा हिस्सा अमेरिका के साथ होता है। अमेरिका, भारत के कृषि उत्पादों जैसे फल और सब्जियों का सबसे बड़ा खरीदार है। भारत में लग्जरी कारों पर पहले 125% टैरिफ था, जिसे घटाकर 70% कर दिया गया है। अगर अमेरिका ने भारत पर टैरिफ बढ़ाया, तो इससे भारतीय निर्यातकों को बड़ा नुकसान हो सकता है।
अमेरिकी ऑटो शेयरों में गिरावट
ट्रंप की इस घोषणा के बाद ऑटो कंपनियों के शेयरों में गिरावट देखी गई।
- जनरल मोटर्स (GM) के शेयरों में 3% की गिरावट आई।
- जीप और क्रिसलर की मालिक कंपनी स्टेलांटिस के शेयर 3.6% गिर गए।
- फोर्ड मोटर कंपनी के शेयरों में हल्की बढ़ोतरी हुई।
विश्लेषकों का कहना है कि, इस फैसले से अमेरिकी ऑटो उद्योग में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। हालांकि, नई फैक्ट्रियों की स्थापना और उत्पादन को स्थानांतरित करने में वर्षों लग सकते हैं।
क्या इस फैसले में एलन मस्क का हाथ है?
टेस्ला के सीईओ एलन मस्क की इस फैसले में भूमिका को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं। लेकिन ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया कि, मस्क ने इस नीति में कोई भूमिका नहीं निभाई है।
ट्रंप ने कहा, “मस्क ने मुझे इस पर कोई सलाह नहीं दी।” हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि, ये टैरिफ टेस्ला के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
चीन को टैरिफ में छूट देंगे ट्रंप ?
डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिया है कि, वह चीन को टैरिफ में मामूली छूट दे सकते हैं, लेकिन इसके बदले वे टिकटॉक पर नियंत्रण चाहते हैं।
ट्रंप ने कहा, “अगर चीन टिकटॉक को अमेरिका में बेचने पर सहमत होता है, तो हम उन्हें टैरिफ में थोड़ी छूट दे सकते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि वे इस समझौते की समय सीमा बढ़ाने के लिए तैयार हैं।
क्या है ट्रंप की रणनीति?
ट्रंप प्रशासन का यह फैसला अमेरिका में लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम करने की रणनीति का हिस्सा है। इससे अमेरिकी उद्योगों को मजबूती मिलेगी। सरकार को अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। विदेशी निवेशकों को अमेरिका में ही उत्पादन करने के लिए मजबूर किया जाएगा। हालांकि, इस फैसले से वैश्विक व्यापारिक तनाव बढ़ सकता है, जिससे अमेरिका को भी दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है।
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