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Rang Panchami : होली के चार दिन बाद क्यों मनाते हैं रंगों का यह पर्व, जानिए इससे जुड़ी मान्यताएं

आज देश भर में रंग पंचमी का त्योहार मनाया जा रहा है। होली के बाद चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को यह त्योहार मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हर वर्ष इस तिथि पर अबीर-गुलाल, हल्दी और चंदन के साथ ही फूलों से बने रंग आसमान में उड़ाने से राजसिक और तामसिक शक्तियों का प्रभाव कम होकर मन में सात्विक भाव आता है। इससे सभी देवी-देवता बहुत ही प्रसन्न होते हैं।

रंग पंचमी नाम क्यों है?

रंग पंचमी का पर्व होली के त्योहार का ही एक खास दिन होता है। होली का पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ हो जाता है और पंचमी तिथि तक चलता है। पंचमी तिथि पर पड़ने के कारण ही इसे रंग पंचमी का पर्व कहते हैं।

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प्राचीन समय में वंसतोत्सव के रूप में होली का त्योहार कई दिनों तक मनाया जाता था। वर्तमान समय में ये संभव नहीं है जिसके चलते वसंतोत्सव का पहला दिन होली के रूप में अंतिम दिन रंग पंचमी का रूप में मनाया जाता है।

रंग पंचमी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि त्रेतायुग के प्रारंभ में जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया था। अर्थात उस समय भगवान के तेज से ही अलग-अलग रंग निकले। वे रंग संसार में फैल गए और पूरी सृष्टि रंगीन हो गई। इसलिए माना जाता है कि रंगपंचमी पर अलग-अलग रंगों को हवा में उड़ाना धूलि वंदन होता है और ऐसा करने से भगवान खुश होते हैं।

रंग पंचमी पर हवा में अबीर-गुलाल उड़ाने का महत्व

पंचमी तिथि पर रंगों के उत्सव से दैवीय शक्ति का असर ज्यादा होता है जिससे नकारात्मक ताकतें कम हो जाती हैं। इसके चलते हवा के साथ आनंद भी धरती की ओर बहता है। रंग पंचमी पर उड़ाए गए अलग-अलग रंगों से इकट्ठा हुए शक्ति के कण अनिष्ट शक्ति से लड़ते हैं। जिस कारण से मनुष्य के जीवन में दैवीय शक्तियों का प्रभाव बन रहता है और जीवन में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा रहती है। वहीं सामाजिक दृष्टि से यह त्योहार प्रेम-सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक है।

पुराणों के अनुसार, जितने भी रंग इस दुनिया में विद्यामान है, वे सभी किसी न किसी दैवीय शक्ति का रूप है। जब हम उन रंगों से होली खेलते हैं या हवा में उड़ाते हैं तो वे शक्तियां जागृत होती हैं।

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धन प्राप्ति के लिए क्या करें?

  • रंग पंचमी के दिन कमल के फूल पर बैठी लक्ष्मी नारायण के चित्र को घर के उत्तर दिशा में स्थापित करें और लोटे में जल भरकर रखें।
  • गाय के घी का दीपक जलाकर लाल गुलाब के फूल लक्ष्मी नारायण जी को अर्पण करें।
  • एक आसन पर बैठकर ॐ श्रीं श्रीये नमः मंत्र का तीन माला जाप करें।
  • लक्ष्मी नारायण जी को गुड़ और मिश्री का भोग लगाएं।
  • जाप के बाद पूजा में रखा हुआ जल सारे घर में छिड़क दें।
  • आपके घर में धन की बरकत कुछ समय बाद जरूर दिखाई देगी।

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