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भोले की नगरी काशी से आते हैं राम दरबार के मुकुट

Tradition : 159 साल से जबलपुर की श्री गोविंदगंज रामलीला समिति के लिए विशेष परिवार तैयार करता है जेवरात

हर्षित चौरसिया-जबलपुर। देश की सबसे प्राचीनतम रामलीला समितियों में शामिल जबलपुर की श्री गोविंदगंज रामलीला समिति पिछले 159 वर्षों से रामलीला का मंचन करती आ रही है। खास यह है कि रामलीला में प्रभु श्रीराम के लिए मुकुट भोले की नगरी काशी से बनकर आता है। भगवान के मुकुट काशी निवासी मनीष अग्रवाल के परिवार द्वारा तैयार किए जाते हैं।

रामलीला समिति के संरक्षक राकेश पाठक ने बताया कि भगवान के मुकुट में की जाने वाली कारीगरी विशिष्ट होती है। ये मुकुट सोने व चांदी के वर्क से बनते हैं और पीढ़ियों से मुकुट काशी से ही बनकर आ रहे हैं। समिति के संरक्षक अरुण दुबे ने बताया कि नए मुकुट के लिए करीब एक साल पहले ऑर्डर देना पड़ता है। एक मुकुट को तैयार करने के लिए 6 माह तक समय लगता है।

इसलिए बनवाए जाते हैं काशी से मुकुट

समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि भगवान के मुकुट में बारीक नक्काशी होती है, जो हमारे प्रदेश में कहीं नहीं होती है। खास बात यह है कि इस तरह के कार्य विशेष कारीगर करते हैं, जो उत्तर प्रदेश में बनारस और उसके आसपास के क्षेत्र में ही हैं। इसलिए करीब 159 सालों से मुकुट काशी से ही बनकर आते हैं।

वर्ष में शारदेय नवरात्र के समय समिति द्वारा रामलीला का मंचन किया जाता है। इसमें प्रभु श्रीराम और उनके साथ लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, माता सीता व हनुमान जी के मुकुट काशी से बनकर आते हैं। रामलीला के समापन के बाद इन्हें विधिवत पूजन-अर्चन के बाद सीलबंद आलमारी में वापस रख दिया जाता है। -मनीष पाठक, महामंत्री, श्री गोविंदगंज रामलीला समिति जबलपुर

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