
पल्लवी वाघेला-भोपाल। शादी में यह सोचकर जमकर पैसा खर्च किया कि बेटी परदेस भले ही जा रही है, पर वहां राज करेगी। लेकिन अब उस बेटी को उसका हक दिलाने कोर्ट में चक्कर काट रहा हूं। केस को तीन साल होने वाले हैं, लेकिन दामाद हाथ नहीं आ रहा तो समाधान कैसे निकले। बेटी डिप्रेशन में और मैं बीमार रहने लगा हूं। यह व्यथा एक 72 वर्षीय बुजुर्ग की है।
यह अकेला मामला नहीं, एनआरआई से शादी के बाद जब विवाद कोर्ट पहुंचता है तो विदेश में बैठे पति, कोर्ट की तारीख होने पर प्रत्यक्ष या वीडियो कांफ्रेंसिंग में उपस्थित होना तो दूर अपनी आय का ब्योरा भी नहीं देते। फैमिली कोर्ट भोपाल में करीब 23 मामले इसी तरह के हैं।
मामला विदेश का होने के कारण पति की वास्तविक आय जानना कठिन होता है, वहीं परिवार यह कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि उन्हें बेटे की खबर नहीं। लंबित प्रकरणों पर एक्सपर्ट का कहना है कि कोविड के चलते भी प्रकरण लंबे समय चले हैं।
पति और ससुराल दोनों ने छोड़ा
श्वेता का पति आस्ट्रेलिया में और ससुराल गुजरात में है। पति ने बीमार होने पर श्वेता का इलाज तक नहीं कराया। मजबूरी में पैरेंट्स ने उसे भोपाल बुला लिया। सात सालों में ससुराल ने उसकी सुध नहीं ली। पांच साल से मेंटेनेंस का केस चल रहा है। पति, आदेश के बाद भी आय का ब्योरा नहीं भेज रहा। दो माह पहले श्वेता के पिता का निधन हो गया। श्वेता का कहना है कि उसकी चिंता ने पिता की जान ले ली।
कमजोर नहीं है कानून
एनआरआई शादियों के मामले कॉम्प्लीकेटेड होते हैं, लेकिन कानून कमजोर नहीं है। यदि परिवार, भारत में है तो उन्हें समन या उनकी प्रॉपर्टी अटैच कर, मामले के जल्द निराकरण का प्रयास हो सकता है। वहीं रिस्पांसिबल कंट्रीज में प्रॉपर तरीके से एप्रोच, वर्क कर अनावेदक के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। हां, यह काम बाबू या पुलिस के भरोसे नहीं हो सकता। इसके लिए जज को खुद इन्वॉल्व होकर काम करना होगा। – आशुतोष मिश्रा, प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट विदिशा