नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बुलडोजर एक्शन वाली याचिका पर सुनवाई की। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और कानून का पालन सभी धर्मों के लिए समान होना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ किसी व्यक्ति के आपराधिक मामले में आरोपी होने के कारण उसके घर पर बुलडोजर चलाना संवैधानिक रूप से गलत है।
मंदिर हो या मस्जिद, सड़क पर धार्मिक निर्माण गलत
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि मंदिर हो या मस्जिद, सड़क पर धार्मिक निर्माण गलत है। सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी प्रकार का निर्माण या अतिक्रमण सार्वजनिक सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है, इसीलिए इसे हटाना ही सही होगा। कोर्ट ने कहा कि धार्मिक निर्माण की आड़ में सड़क पर कब्जा स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले पर गाइडलाइन पूरे देश में लागू की जाएगी।
बुलडोजर कार्रवाई के पहले दिया गया नोटिस
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश तीनों राज्यों की तरफ से पेश हुए। उन्होंने कोर्ट में कहा कि बुलडोजर कार्रवाई के लिए आपराधिक आरोप कोई आधार नहीं हो सकता। बुलडोजर एक्शन से पहले मामले में संलिप्त लोगों को 10 दिन पहले ही नोटिस भेजा गया था। मेहता ने बताया कि नगरपालिका में कानूनों के तहत नोटिस जारी करने का प्रावधान है।
महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा का मुद्दा
सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि बुलडोजर कार्रवाई में महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को सड़कों पर आना अच्छा नहीं लगता। अगर इन्हें पर्याप्त समय और वैकल्पिक व्यवस्था दी जाए, तो यह मानवीय दृष्टिकोण से बेहतर होगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि लोगों के पुनर्वास की उचित व्यवस्था हो सके।
अल्पसंख्यकों पर बुलडोजर कार्रवाई के आरोप
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने याचिका में आरोप लगाया था कि अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है और सरकार को इस तरह की कार्रवाई रोकनी चाहिए। इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ ऐसे बहुत कम मामले हैं। इस प्रकार के मामले केवल दो प्रतिशत ही हैं। जस्टिस गवई ने कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं और हमारे आदेश किसी भी प्रकार के भेदभाव से ऊपर रहकर पूरे देश में लागू होंगे।
फैसला सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर फैसला सुरक्षित रख लिया है और कहा कि, आखिरी फैसला सुनाए जाने तक इस पर रोक बरकरार रहेगी। अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि धर्मनिरपेक्षता और संविधान के सिद्धांतों का पालन सर्वोपरि है और इसके अनुरूप ही सभी कार्रवाई होनी चाहिए। अभी सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की तारीख तय नहीं की है।
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