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अतिक्रमण और रेत खनन से ‘सिंघाड़ी’ नदी हुई लुप्त, नष्ट हुआ पूरा जल तंत्र

दो दशक पहले कलकल बहने वाली नदी अब हो गई बदहाल

पंकज चतुर्वेदी पर्यावरणविद् । बुंदेलखंड के प्रमुख शहर छतरपुर में मौजूद सिंघाड़ी नदी आज नाले की तरह दिखने लगी है। इसकी धारा पूरी तरह सूख गई है। जहां कभी पानी रहता था, अब वहां बालू-रेत उत्खनन वालों ने बहाव मार्ग को ऊबड़-खाबड़ और दलदली बना दिया है। शहरी सीमा में जगह-जगह जमीन के लोभ में अवैध कब्जे हो गए हैं। यही कारण है कि तीन तालाबों को भरने वाली सिंघाड़ी नदी का पानी थम गया है। संकट मोचन पहाड़िया पर अब हरियाली की जगह कच्चे-पक्के मकान दिखने लगे हैं। कभी बरसात की हर बूंद इस पहाड़ पर रुकती थी और धीरे- धीरे रिसकर नदी को पोषित करती थी। परंतु, आज यहां बने हजारों मकानों में रहने वालों का मल-मूत्र और गंदा पानी सीधे सिंघाड़ी नदी में गिरकर उसे नाला बना रहा है।

22 किमी का तय करती थी सफर

जब यह नदी अपने पूरे स्वरूप में थी तो छतरपुर शहर से निकल कर कोई 22 किमी का सफर तय कर हमा, पिड़पा, कलानी गांव होते हुए उर्मिल नदी में मिल जाती थी। उर्मिल भी यमुना तंत्र की नदी है। नदी जिंदा थी तो शहर के सभी तालाब, कुएं भी लबालब रहते थे। दो दशक पहले तक यह नदी 12 महीने कलकल बहती रहती थी। शहर के सभी तालाबों को भरने में कभी सिंघाड़ी नदी की बहुत बड़ी भूमिका होती थी।

नदी अब त्रासदी बन गई

लोग मानसूनी दिनों में एक से दो किमी दूर से हैंडपंप से पानी लाने को मजबूर हैं। जल संकट होता है तो या तो पम्प रोपे जाते हैं। यह कोई नहीं जानता कि जमीन की कोख या पाइप में पानी कहां से आएगा? – अरविंद खरे, पूर्व बीमा अधिकारी

मुख्य धारा में अतिक्रमण

नदी की मुख्य धारा के मार्ग में अतिक्रमण होता जा रहा है। नदी के कछार ही नहीं प्रवाह मार्ग में ही लोगों ने मकान बना लिए हैं। नदी के मार्ग में जो छोटे-छोटे रपटे और बंधान बने थे, वे भी खत्म हो गए हैं। – गोविंद शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार

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