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स्टडी स्टे बैक, छात्रवृत्ति, काउंसलिंग ने किया विदेश में पढ़ाई करना आसान

भोपाल के छात्रों को अब स्वीडन,आयरलैंड और फ्रांस में पढ़ना आ रहा पसंद

विदेश में पढ़ाई के लिए अब पहले से आसान प्रक्रिया, एजुकेशन लोन और काउंसलिंग सुविधाएं होने के कारण स्टूडेंट्स का रुझान स्टडी एब्रॉड के लिए बढ़ा है। एजुकेशनल टेस्टिंग सर्विस (ईटीएस) के अनुसार, कोविड-19 महामारी के बाद अंतर्राष्ट्रीय यात्रा फिर से शुरू होने के बाद से भारत में टॉफेल परीक्षा देने वालों की संख्या में 59 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक वहीं स्टूडेंट्स अब फ्रांस, सिंगापुर और स्वीडन का भी रुख कर रहे हैं।

भोपाल की बात करें तो कोविड के पहले तक लगभग 900 स्टूडेंट्स इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम (आईईएलटीएस) और टॉफेल जैसी परीक्षा में शामिल होते थे, लेकिन अब हर साल लगभग 2 से 3 हजार छात्र यह परीक्षा देते हैं, जिसमें से लगभग 1000 छात्र भोपाल से विदेश में शिक्षा के लिए जा रहे हैं। भोपाल के स्टूडेंट्स को दुबई, सिंगापुर, स्वीडन, आयरलैंड भी रास आ रहा है, क्योंकि यहां दुनियाभर की टॉप विदेशी यूनिवर्सिटीज के कैंपस शुरू हो गए हैं।

यूके, यूएस के अलावा यूरोपियन देशों की तरफ बढ़ा भोपाल का रुझान

यूके, यूएस तो हमेशा से पसंदीदा पढ़ाई की जगह हैं, लेकिन अब भोपाल के स्टूडेंट्स को यूरोपियन कंट्रीज में पढ़ना भी रास आ रहा है। जर्मनी, नार्वे, पौलेंड, इटली, स्वीडन का रूख स्टूडेंट्स कर रहे हैं, क्योंकि यह देश क्रीम स्टूडेंट्स चाहते हैं। इन देशों में मास्टर्स कोर्स के लिए क्रीम स्टूडेंट्स को 100 फीसदी स्कॉलरशिप उनके एकेडमिक प्रोफाइल के मुताबिक मिलती है, क्योंकि यह देश योग्य छात्र चाहते हैं। इसके अलावा जीआरई, टॉफेल और आईईएलटीसी के स्कोर में अच्छा परफॉर्म करने वाले स्टू़डेंट्स को प्राथमिकता मिलती है। जर्मनी में मैकेनिकल व ऑटोमोबाइल में जीआरई व लोकल लैंग्वेज का कम से कम ए-1 लेवल आना चाहिए। भोपाल में फ्रेंच व जर्मन भाषाओं के एग्जाम भी होते हैं। इसके अलावा हर देश की लैंग्वेज के ऑनलाइन एग्जाम होते है, जिसका स्कोर होने पर एडमिशन में प्राथमिकता मिलती है।

अब विदेश में शिक्षा पाना हुआ आसान

कई आईटी कंपनी के हेड क्वार्टर आयलैंड में हैं। यहां आईटी, मैनेजमेंट, फाइनेंस के कोर्स बहुत अच्छे हैं। कई यूरोपियन देशों में एक से दो साल का स्टे बैक और मास्टर्स एक साल में पूरा हो जाता है। फ्रांस में मैनेजमेंट स्टूडेंट्स जाना पसंद करते हैं, यहां भी 100 फीसदी स्कॉलरशिप एकेडमिक परफॉर्मेंस व एक्स्ट्रा कॅरिकुलम एक्टिविटी के आधार पर मिलती हैं। यूके में टॉप यूनिवर्सिटीज है, यहां भी दो साल का स्टे बैक मिलता है, वहीं ऑस्ट्रेलिया में तीन साल तक का स्टे बैक मिलता है। पहले के मुकाबले विदेश में शिक्षा के लिए जाना आसान हो गया है। यूनिवर्सिटीज प्रतिनिधि अलॉट कर रहीं हैं, जो कि काउंसलिंग से लेकर गंतव्य स्थान तक पहुंचने तक की पूरी व्यवस्था कराते हैं। वहीं अब लड़के और लड़कियां बराबरी से स्टडी अब्रॉड के लिए एप्लाई करने लगे हैं। यह एक नया ट्रेंड हैं। भोपाल से हर साल लगभग 1000 स्टूडेंट्स विदेश पढ़ने जा रहे हैं। -कंचन शर्मा, ऑपरेशन मैनेजर, केसी ओवरसीज

अब छात्राएं भी बराबरी से कर रहीं एप्लाई

अब छात्राएं भी छात्रों के बराबर एप्लाई कर रही हैं। फ्रांस ने पढ़ाई के बाद पांच साल का स्टे बैक देना शुरू कर दिया। दुबई में टॉप यूनिवर्सिटी के कैंपस शुरू हुए हैं। सिंगापुर सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और रोजगार के हिसाब से पसंदीदा है। भारत के साथ डिप्लोमेटिक रिलेशंस जिन देशों के अच्छे हैं, स्टूडेंट्स को वहां पढ़ने जाने का सुझाव देते हैं। -मनी मिश्रा, डायरेक्टर, नॉलेज किंगडम

(इनपुट-प्रीति जैन)

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