
सावन का महीना इस साल 14 जुलाई से 12 अगस्त तक रहेगा। इसी के साथ देवाधिदेव महादेव शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त कांवड़ ले जाते हैं। इस साल 14 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू होगी। इस दौरान श्रद्धालु गंगा नदी से जल भरकर शिव मंदिर पहुंचते हैं और महादेव की कृपा पाने के लिए उस जल से रुद्राभिषेक करते हैं।
कांवड़ यात्रा के प्रकार
- खड़ी कांवड़ : भगवान शिव के बहुत से भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। आमतौर पर खड़ी कांवड़ किसी सहयोगी की मदद से लाई जाती है। कांवड़ लाने वाला भक्त जब आराम करता है तो उनके सहयोगी अपने कंधे पर कांवड़ को चलने के अंदाज में डुलाते रहते हैं।
- डाक कांवड़ : डाक कांवड़ में भक्तों को एक निश्चित समय के भीतर जल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि डाक कांवड़ यात्रा की शुरुआत से कांवड़िए शिव के जलाभिषेक तक बिना रुके लगातार चलते रहते हैं। शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं।
- झूला कांवड़ : भगवान शिव के ज्यादातर भक्त झूला कांवड़ लेकर आते हैं। बच्चे, बूढ़े और महिलाएं भी यह कांवड़ आसानी से लेकर आ जाते हैं। झूला कांवड़ की खासियत ये है कि इसे आप स्टैंड या पेड़ पर रखने के बाद आराम कर सकते हैं। हालांकि, आराम या भोजन करने के बाद कांवड़ उठाने के लिए आपको पुन: शुद्ध होना पड़ेगा।
क्या है कांवड़ यात्रा ?
सावन के इस पवित्र महीने में शिव भक्त कांवड़ यात्रा का आयोजन करते हैं। जिसमें लाखों भक्त भोलेनाथ को खुश करने के लिए हरिद्वार और गंगोत्री धाम की यात्रा करते हैं। इन तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी कांवड़ को अपन कंधों पर रखकर पैदल लाते हैं। फिर गंगा जल भगवान शिवजी को चढ़ाया जाता है। इसी यात्रा को कांवड़ यात्रा कहते हैं। पहले लोग पैदल ही कांवड़ यात्रा करते थे। हालांकि, बदलते समय के साथ भक्त बाइक, कार या अन्य साधनों का इस्तेमाल करने लगे हैं।
कांवड़ यात्रा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन चल रहा था। उस मंथन से 14 रत्न निकले थे। उनमें से एक हलाहल विष भी था। जिससे संसार के नष्ट होने का डर था। उस समय सृष्टि की रक्षा के लिए शिवजी ने उस विष को पी लिया, लेकिन अपने गले (कंड) से नीचे नहीं उतारा। जहर के प्रभाव से भोलेनाथ का कंड नीला पड़ गया। इस वजह से उनका नाम नीलकंड पड़ा। कहा जाता है कि रावण कांवड़ में गंगाजल लेकर आया था। उसी जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया। तब जाकर शिवजी को विष से राहत मिली थी।
कांवड़ यात्रा के नियम
- कांवड़ यात्रा शुरू के बाद कांवड़ियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा करना वर्जित होता है।
- यात्रा के दौरान उस व्यक्ति को मांस,मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करना होता है।
- कांवड़ यात्रा के दौरान पैदल चलने का विधान है। हालांकि अब लोग बाइक, ट्रक या फिर किसी दूसरे साधनों का इस्तेमाल करने लगे हैं।
- कांवड़ यात्रा में शुद्धता बहुत जरूरी है। इसलिए बिना स्नान किए कावड़ को हाथ नहीं लगाना चाहिए।
- यात्रा के दौरान किसी कारणवश रुकना पड़े तो गंगाजल भरे कांवड़ को नीचे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इसे किसी ऊंचे स्थान पर या स्टैंड पर रखें।
(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)
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