
राज्य संग्रहालय में प्रागैतिहासिक काल के पाषाण उपकरणों से लेकर 19वीं शताब्दी तक के आधुनिक अस्त्र- शस्त्रों पर आधारित सात दिवसीय एग्जीबिशन लगाई गई है। इस एग्जीबिशन में पाषाण काल में आदिमानव द्वारा उपयोग किए जाने वाले पत्थरों के अस्त्र-शस्त्रों के साथ ही राजा-महाराजाओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले लोहे के प्राचीन अस्त्र- शस्त्र प्रदर्शित किए गए हैं।
यह प्रदर्शनी डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर पुरातत्व शोध संस्थान एवं संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा लगाई गई है। इस एग्जीबिशन में कुठार, तलवारें, कटारें, ढाल, बरछी, भाले, तोपें, बंदूकें, कवच, जिरह बख्तर आदि शामिल हैं, जो कि प्राचीन काल में युद्ध में प्रयोग किए जाते थे। प्रदर्शनी 6 अगस्त तक दोपहर 12 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक देखी जा सकती है।
युद्ध में प्रयुक्त लौह वज्र
एग्जीबिशन में लौह वज्र भी रखा गया है, जो कि लोहे का गोला है और एक लोहे के चेन से जुड़ा हुआ है। इसका प्रयोग युद्ध के दौरान दुश्मन को खदेड़ने में किया जाता था, जिसमें गोलानुमा आकार के लौह वज्र को घुमाकर दुश्मन पर हमला किया जाता था।
बख्तरबंद और शिरस्त्राण जाली
शत्रुओं से स्वयं की रक्षा के लिए धातु का बना बख्तरबंद और जाली वाला शिरस्त्राण भी इस प्रदर्शनी में खास है। योद्धाओं द्वारा स्वयं की रक्षा के लिए पहना जाने वाला लोहे की जालीनुमा आकृति का यह वस्त्र है। वहीं, जाली वाला शिरस्त्राण भी लोहे की जालीनुमा आकृति में है। इस तरह के लोहे के वस्त्रों से सिर, शरीर व चेहरा कवर किया जाता था।
खंजर और छुरियां
प्रदर्शनी में विभिन्न आकार के खंजर और छुरियां भी हैं। खंजर और छुरियों का उपयोग नजदीकी लड़ाई में किया जाता था। योद्धा इन्हें हाथ में लेकर विरोधी पर हमले करते थे।
संगीन
एग्जीबिशन में शामिल की गई संगीन का उपयोग बारूद समाप्त होने पर किया जाता था। जब युद्ध के समय बारूद समाप्त हो जाता था, तो बंदूक के ऊपरी हिस्से में लगी लोहे के नुकीली संगीन का उपयोग लड़ाई में किया जाता था।