जबलपुरमध्य प्रदेश

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद को ऐसे दी जाएगी समाधि, अंतिम दर्शन के लिए उमड़े भक्त; संतों की मीटिंग में होगी उत्तराधिकारी की घोषणा

द्वारका एवं शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को निधन हो गया। उन्होंने 99 साल की उम्र में मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में आखिरी सांस ली। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पार्थिव शरीर को आज नरसिंहपुर के परमहंसी गंगा आश्रम में भू-समाधि दिलाई जाएगी। फिलहाल, परमहंसी गंगा आश्रम के पास मणिदीप आश्रम में शंकराचार्य का पार्थिव शरीर रखा गया है, जहां उनके अंतिम दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी हुई है। समाधि स्थल की खुदाई का काम पूरा हो गया है। शंकराचार्य के पार्थिव शरीर को पालकी में बैठाकर समाधि स्थल तक लाया जाएगा।

ऐसे दी जाएगी समाधि

भू-समाधि देने का विधान शैव, नाथ दशनामी, अघोर और शाक्त परंपरा के साधू-संतों के लिए है। पार्थिव शरीर को सिद्धासन की मुद्रा में बैठाकर भूमि में दफना दिया जाता है। आम तौर पर संतों की पार्थिव देह को उनके गुरु की समाधि के पास या मठ में दफनाया जाता है। शंकराचार्य को भी उनके आश्रम में भू-समाधि दी जाएगी।

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संतों की मीटिंग में होगी उत्तराधिकारी की घोषणा

दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने कहा कि समाधि की प्रक्रिया पूरी होने के बाद संत समाज की मीटिंग की जाएगी। उनके नाम की घोषणा आज औपचारिक रूप से की जाएगी।

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9 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर

स्वामी शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। माता-पिता ने बचपन में इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज 9 साल की उम्र में स्वामी स्वरूपानंद घर छोड़ दिया और धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। देश के तमाम हिंदू तीर्थ स्थलों का भ्रमण करने के बाद वह काशी (वाराणसी) पहुंचे। यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों और धर्म की शिक्षा ग्रहण की।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बने और जेल भी गए

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महज 19 साल की उम्र में ही ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए थे। साल 1942 में जब पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का आंदोलन चल रहा था। स्वामी स्वरूपानंद भी आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम चलाई। तब स्वामी स्वरूपानंद क्रांतिकारी साधु के रुप में प्रसिद्ध हुए थे। मुहिम चलाई के लिए उन्हें पहले वाराणसी की जेल में 9 महीने और फिर मध्य प्रदेश की जेलों में 6 महीने रहना पड़ा। इस दौरान वह करपात्री महाराज के राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी रहे।

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