
लंदन। पत्थरों को काटने या ड्रिल करने के दौरान निकलने वाली सिलिका की धूल अगर सांस के जरिए शरीर के अंदर तक पहुंच जाए, तो इससे फेफड़ों की जानलेवा बीमारी हो सकती है। निर्माण कार्य, खनन और अन्य उद्योगों में रोज काम करने के दौरान लोग सिलिका की धूल के संपर्क में आते हैं। संपर्क को घटा कर दुनिया में 13,000 जानें बच सकती हैं। ब्रिटेन के रिसर्चरों ने पता लगाया है कि पूरी जिंदगी धूल की मौजूदा स्वीकार्य सीमाओं के संपर्क में आने वाले किसी कामगार में सिलिकोसिस विकसित होने का गंभीर खतरा हो सकता है।
यह फेफड़ों की घातक बीमारी है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि सिलिकोसिस भी वैसी ही बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन सकती है जैसा एस्बेस्टस के संपर्क में आने पर हुआ। एस्बेस्टस जहरीला रसायन है। यह भवन निर्माण में इस्तेमाल होता रहा है और इसके कारण कई लोगों की जान गई थी।
संपर्क में आने की सीमा घटाई जाए
लंदन के इंपीरियल कॉलेज से जुड़े पैट्रिक हॉलेट ने कहा, हमारे शोध से यह निष्कर्ष निकलता है कि हर दिन सिलिका की धूल के संपर्क में आने की सीमा को 0.1 मिलीग्रीम प्रति क्यूबिक मीटर से घटाकर 0.05 मिलीग्रीम प्रति क्यूबिक मीटर किया जाना चाहिए।
सांस से जुड़ा रोग है सिलिकोसिस
सिलिकोसिस सांस से जुड़ा रोग है, जो फेफड़ों को सख्त बनाता है। यह सिलिका की धूल या सिलिका क्रिस्टल के कारण होता है, जो मिट्टी, रेत, कंक्रीट, मोर्टार, ग्रेनाइट और कृत्रिम पत्थरों में पाए जाते हैं।