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उज्जैन : पंचतत्व में विलीन हुए सीएम डॉ. यादव के पिता, शिवराज-सिंधिया समेत कई मंत्रियों ने दी श्रद्धांजलि

भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पिता पूनमचंद यादव का बुधवार को शिप्रा तट पर अंतिम संस्कार हुआ। उन्होंने मंगलवार (3 सितंबर) को 100 साल की उम्र में अंतिम सांस ली थी। वे एक हफ्ते से बीमार चल रहे थे। पिता के निधन की खबर मिलते ही सीएम डॉ. मोहन यादव भोपाल से उज्जैन पहुंच गए थे। आज (4 सितंबर) दोपहर करीब 12 बजे उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुई, जो शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए शिप्रा तट पर पहुंची। यहां भूखी माता मंदिर के पास सीएम और परिवार के लोगों ने अंतिम संस्कार किया।

अंतिम दर्शन के लिए उमड़ी भीड़

सीएम के पिता की अर्थी को घर के बाहर रखा गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए बहुत लोग पहुंचे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी पिता के अंतिम दर्शन किए।

अंतिम यात्रा में शामिल हुए ये लोग

अंतिम यात्रा में सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के नेता भी शामिल हुए। कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला, मंत्री चैतन्य काश्यप, मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर, मंत्री राव उदय प्रताप सिंह, मंत्री राधा सिंह, मंत्री करण वर्मा, मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल, मंत्री, नारायण सिंह कुशवाह, मंत्री लखन पटेल मंत्री, मंत्री विश्वास सारंग, मुख्य सचिव वीरा राणा, डीजीपी सुधीर कुमार सक्सेना, प्रमुख सचिव राजेश राजौरा, मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री, विधायक और कांग्रेस नेता समेत प्रदेश के कई बड़े अधिकारी शामिल होंगे।

CM मोहन यादव ने लिखा भावुक पोस्ट

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने X पर पोस्ट कर कहा, “परम पूज्य पिताजी आदरणीय पूनमचंद यादव का निधन मेरे जीवन की अपूरणीय क्षति है। संघर्ष और नैतिक मूल्यों व सिद्धांतों से परिपूर्ण पिताजी के जीवन ने हमें सदैव मर्यादा के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। आपके दिए संस्कार सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। पिताजी के चरणों में शत-शत नमन।

अस्पताल मिलने पहुंचे थे सिंधिया

सोमवार को उज्‍जैन आए केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्य सिंधिया और उनके बेटे महाआर्यमन सिंधिया ने अस्पताल जाकर सीएम के पिता पूनम चंद यादव का हालचाल जाना था।

उपज बेचने खुद मंडी जाते थे पूनमचंद

पूनम चंद यादव ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया। उन्होंने बेटे नंदू यादव, नारायण यादव, मोहन यादव और बेटी कलावती, शांति देवी को पढ़ाया। संघर्ष के दिनों में रतलाम से उज्जैन आए और सबसे पहले एक हीरा मिल में काम किया।

इसके बाद शहर के मालीपुरा में भजिया और फ्रीगंज में दाल-बाफले की दुकान लगाई। 100 साल की उम्र होने के बाद भी वे अपनी उपज बेचने खुद मंडी जाते थे।

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