
जनजातीय संग्रहालय में नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि संभावना का आयोजन किया गया। इस मौके पर छिंदवाड़ा सटे गांवों और सिवनी में निवासरत गोंड जनजातीय समुदाय के नृत्यों को प्रस्तुत किया गया। वहीं मंडला के कलाकारों द्वारा बैगा जनजाति का करमा नृत्य प्रस्तुत किया गया। संग्रहालय में दोपहर के समय मुक्ताकाश मंच से प्रस्तुति दी गई तो बड़ी संख्या में रविवार को संग्रहालय पहुंचे दर्शकों ने कलाकारों के चारों तरफ खड़े होकर इन नृत्य का आनंद लिया। संग्रहालय परिसर के बाहर के एरिया में भी रंग-बिरंगे परिधानों में झूमते-गाते कलाकारों ने पारंपरिक वाद्ययंत्रों पर नृत्य किया। इस अवसर पर नर्तक सोनू धुर्वे एवं साथी, सिवनी द्वारा भड़ौनी नृत्य और सोन साय बैगा एवं साथी, मंडला द्वारा बैगा जनजातीय नृत्य करमा की प्रस्तुति दी गई।
भड़ौनी नृत्य में घोड़ी के साथ रचाते हैं स्वांग
भड़ौनी नृत्य छिंदवाड़ा से सटे गांवों और सिवनी में निवासरत गोंड जनजातीय समुदाय के लोगों के द्वारा किया जाता है। पर्व- त्योहार, विवाह आदि खुशी के अवसरों पर घोड़ी का स्वांग लेकर घर-घर नृत्य करते हैं। यह नृत्य उमंग और आनंद के साथ कुशल हस्त-पद संचालन और अपनी आदिम ऊर्जा के साथ किया जाता है। सगाई, विवाह, छठ आदि अवसरों पर यह नृत्य किया जाता है। इस नृत्य में चिटकोला, घुंघरू, नगडिया और ढोलक मुख्य वाद्य के रूप में उपयोग होते हैं। -सोनू धुर्वे, कलाकार, सिवनी
अलग-अलग तरह के होते हैं करमा नृत्य
छत्तीसगढ़ी अंचल के लोक और आदिवासी समाज में करमा नृत्य किया जाता है। भादो माह की एकादशी का उपवास करके करम वृक्ष की शाखा को आंगन या चौगान में रोपित किया जाता है। दूसरे दिन नए अन्न को अपने कुल देवता को अर्पित किया जाता है। नई फसल आने की खुशी में करम पूजा में हर किसी का मन मयूर नृत्य करने लगता है। करमा नृत्य गीत के प्रकार हैं, झूमर लगड़ा, लहकी ठाड़ा और रागिनी करमा। इनका मूल आधार नर्तकों का अंग संचालन है। जो गीत झूमझू मकर गाए जाते हैं वे झूमर कहलाते हैं। एक पैर को झुकाकर गाए जाने वाले लंगड़ा, लहराते हुए नर्तक जो गीत गाते हैं वे लहकी और राग- रागनियों से सम्बद्ध नृत्य रागिनी कहे जाते हैं। -सोन साय बैगा, मंडला