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छिंदवाड़ा के झिरलिंगा गांव के कद्दू से बनता है पुरी का प्रसादम

2 हजार किमी का सफर तय करके पहुंचता है जगन्नाथ मंदिर

विजय एस. गौर-भोपाल। छिंदवाड़ा जिले के झिरलिंगा गांव में शत-प्रतिशत सिर्फ कद्दू की खेती होती है। इसी गांव के कद्दू से ओडिशा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर का प्रसादम बन रहा है। इसके लिए 2 हजार किमी दूर छिंदवाड़ा से कद्दू भेजा जाता है, जिसकी आखिरी खेप मंगलवार को पुरी के लिए रवाना की गई। मप्र के छिंदवाड़ा जिले के झिरलिंगा गांव में ग्रीष्मकालीन कद्दू की खेती होती है।

इसकी खासियत यह है कि यहां के किसान अपने उगाए कद्दू से ही अगली फसल के लिए बीज तैयार कर लेते हैं व किसी रासायनिक खाद का इस्तेमाल भी नहीं करते। वैसे छिंदवाड़ा के करीब 25 गांवों में 2 हजार एकड़ में ग्रीष्मकालीन कद्दू की खेती की जाती है, जोकि मप्र के अलावा बिहार, छत्तीसगढ, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र तक जाता है।

किसान बोले, हमारे कद्दू से प्रसादम बनना सौभाग्य

गांव के सरपंच नरेश ठाकुर, इन्द्रसेन, हरीश , रायसिंह ठाकुर, बृजकुमार ठाकुर, नेकराम साहू, लक्ष्मण, कैलाश और कुबेर ठाकुर सहित 400 किसानों ने 500 एकड़ में कद्दू की फसल लगाई है। इसके लिए होली के अगले दिन से बोवनी शुरू करते हैं। यह रामनवमी के दिन समाप्त हो जाती है। करीब तीन महीने में फसल तैयार हो जाती है। औसतन प्रति एकड़ 10 टन तक कद्दू की पैदावार होती है। यह प्रति किलो 13 से 14 रुपए के भाव बिकता है। इससे प्रति एकड़ 20 हजार रुपए की लागत खर्च काटने के बाद किसानों को 1 लाख रुपए का प्रति एकड़ शुद्ध मुनाफा हो जाता है। भगवान का प्रसाद बनने में कद्दू के उपयोग को गांव के किसान अपना सौभाग्य और भगवान की कृपा मानते हैं।

रत्न भंडार को फिर खोलने की सिफारिश करेगी समिति

भुवनेश्वर। पुरी के जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार के सिलसिले में गठित उच्च स्तरीय समिति ने ओडिशा सरकार को 14 जुलाई को खजाने के आंतरिक कक्ष को फिर से खोलने की सिफारिश करने का फैसला किया है। पुरी में समिति के सदस्यों की एक बैठक के दौरान यह निर्णय लिया गया।

जिले में सालाना टर्नओवर 20 करोड़ रुपए

जिले के कद्दू का सालाना टर्नओवर 20 करोड़ रुपए है। एक कददू का अधिकतम वजन 65 किलो तक होता है। वैसे औसतन एक कद्दू 20-25 किलो का होता है। व्यापारी सीधे खेतों तक लोडिंग वाहनों से पहुंचते हैं और कद्दू की खरीदी कर ले जाते हैं। इससे किसानों का ढुलाई का खर्च बच जाता है। रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करने से भाव अच्छा मिलता है। -जितेंद्र सिंह, उप संचालक कृषि,

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