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ऑफिस टाइम से पहले बांट दिए पास, लोग खाली हाथ लौटे

संस्कृति संचालनालय ने बिना जानकारी दिए सुबह 8 बजे से शुरू किया पास वितरण, 1 बजे पहुंचे लोगों से कहा- सारे पास खत्म

 संस्कृति विभाग 4 अगस्त को इंडियन आइडल फेम पवनदीप-अरुणिता का म्यूजिक कॉन्सर्ट आयोजित करने जा रहा है, जिसके लिए 25 जुलाई से कार्यालयीन समय में प्रवेश-पत्र का वितरण किया जाना था, लेकिन जब लोग शिवाजी नगर स्थित संस्कृति संचालनालय पहुंचे तो उन्हें पता चला कि पास का वितरण सुबह 8 बजे ही चालू कर दिया गया और दोपहर 1 बजे तक सभी एंट्री पास खत्म हो चुके थे। इस पर संचालनालय के बाहर खड़े लोगों ने आपत्ति जताई और कहा कि ऑफिस टाइम से 2.30 घंटे पहले पास क्यों बांटे गए। प्रवेश पत्र लेने आए लोगों ने कहा कि विभाग के लोगों ने अपने जान-पहचान के लोगों को सुबह पास बांट दिए और जब आम लोग पहुंचे तो 1 बजे नोटिस दीवार पर चिपका दिया कि पास खत्म हो गए हैं।

सुबह 8 बजे से पास बांटने का नहीं दे पाए जवाब

इस पर जब संस्कृति संचालक एनपी नामदेव से बात करने संवाददाता संस्कृति संचालनालय पहुंचीं तो बताया गया कि वे दμतर में मौजूद नहीं है। फोन पर दोपहर 1.24 बजे संपर्क कर जब उनसे पूछा गया कि सुबह 8 बजे से प्रवेश-पत्र क्यों बांटे तो वे इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए। पढ़िए उनसे बातचीत के अंश

सवाल: प्रेस विज्ञप्ति जारी करके ऑफिस टाइम में पास देने की बात कही थी, लेकिन दोपहर 1 बजे तक 1500 से कैसे बंट गए?

जवाब: 1000-1200 पास बंट चुके हैं और पास अब खत्म हो गए हैं। सुबह 8 बजे से पास बंट गए, अब पास नहीं बचे।

सवाल: प्रवेश पत्र लेने आए लोग आपत्ति ले रहे हैं कि ऑफिस टाइम से पहले पास क्यों बांटे गए, क्या आपस में ही पास बांट लिए गए हैं?

जवाब: किसी को पास मिलना न मिलना चर्चा का कोई विषय नहीं बनता। (बात पूरी हुए बिना संस्कृति संचालक एनपी नामदेव ने फोन काट दिया। उन्हें तुरंत तीन बार कॉल बैक किया गया लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की।)

दोपहर 1.30 बजे पास लेने पहुंचा तो कहा कि सुबह 8 बजे से ही बंटने लगे तो खत्म हो गए हैं। ऑफिस टाइम सुबह 10.30 बजे का है तो सुबह 8 बजे पास कैसे बांट दिए। रजिस्टर में एंट्री कराकर अपने वालों को पास दे दिए। – वीके गुप्ता, नौकरीपेशा

हमसे कहा गया कि सुबह 8 बजे से पास बंटने के कारण पास खत्म हो गए। मैं यहां दोपहर लगभग 1.25 बजे आई थी। समय से पहले पास किसे बांट दिए , यह तो गलत बात है। – छाया ससम्ल, गृहिणी

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